पत्थर के ओजार |
पत्थर के औजार बनाने का केंद्र
आज इस आर्टिकल में आपको बताएंगे कि भारत में पुरापाषाण काल के समय ओजार बनाने का एक केंद्र था। यह केंद्र भारत के पुरातात्विक स्थल में आता है।
शुरुआत में मानव पत्थर का प्रयोग आग जलाने के लिए करता था धीरे-धीरे उसने पत्थर का प्रयोग औजार बनाने के रूप में किया। इस तरह पत्थर के औजार बनाने का एक केंद्र स्थापित हो गया।
पुरापाषाण काल में कर्नाटक के एक गांव में पत्थर के औजार बनाने का केंद्र था। जहां पुरापाषाण काल में मानव अपने जीवन में पत्थर के औजार उपयोग करने के लिए एक केंद्र बनाया होगा।
कर्नाटक के गुलबर्गा जिले का एक गांव इसामपुर हुंसागी घाटी का उत्तर पश्चिम भाग है जहां 7200 वर्ग मीटर में फैला पूरा पाषाण युगीन स्थल है।
जब 1983 में सिंचाई परियोजना के तहत स्थल की खोज की गई। इस स्थल से औजार का ढेर मिला है। ओजारो में छुरी, हस्त कुठार, प्राप्त हुए हैं।
इन औजारों से पता चलता है कि उस काल में मानव अपने जीवन में औजारों का अत्यधिक प्रयोग करता होगा, वह शिकार करने और जीवन की रक्षा करने लिए औजार का निर्माण करता होगा धीरे-धीरे यह केंद्र के रूप में विकसित हो गया होगा जहां सभी प्रकार के औजार बनाए जाते होंगे।
क्योंकि पुरापाषाण काल में मानव जीवन का आधार शिकार करना ही था, वह शिकार करके ही अपना जीवन चलाता था जिसके लिए उसे औजार की जरूरत होती थी। पत्थर के औजार बनाने का केंद्र से पता चलता है कि मानव भी निवास करता होगा । इसामपुर में ऐसी सभ्यता की तिथि 500,000 से 600.000 वर्ष पूर्व आकी की गई है।
निम्न पुरापाषाण कालीन औजार
प्रागैतिहासिक में मानव जीवन को समझने के लिए उनके द्वारा प्रयोग में लाए गए पत्थर के औजार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यदि एक पत्थर के टुकड़े को तोड़ा जाए तब उससे प्राप्त सबसे बड़ा टुकड़ा कोर कहलाता है तथा प्राप्त की गई अन्य छोटे टुकड़े को फ्लोक कहते है।
उच्च पुरापाषाण कालीन औजार
इस काल में ब्लेड फल वाले औजार का अत्यधिक प्रयोग होता था जिन की लंबाई उसकी चौड़ाई से 2 गुना अधिक होती थी।
जिस प्रकार मानव के जीवन में पाषाण काल पुरापाषाण काल, नवपाषाण काल में हजारों की भूमिका थी उसी प्रकार वर्तमान समय में भी है।