इतिहास को जानने के स्रोत

भारतीय इतिहास को जानने के स्रोत
इतिहास को जानने के स्रोत
इतिहास को जानने के स्रोत
इतिहास सिर्फ एक कथा नहीं है, बल्कि बहुत सारी कथाओं का संकलन है।  अगर बात करें हम दक्षिण एशिया का इतिहास  वर्तमान में मुख्य रूप से   स्रोत पर आधारित है।  पहला स्रोत पाठ्यक्रम और दूसरा पुरातात्विक स्रोतों पर आधारित है। लेकिन यह दोनों स्रोत  अलग-अलग जानकारी  देते हैं।

पाठयात्मक स्रोतों का वर्गीकरण

इन स्रोतों को भाषा, शैली विषय वस्तु के आधार पर बांटा गया है।  अगर हम बात  भारतीय उपमहाद्वीप  में उपलब्ध रचनाओं में  वेद है जिस की भाषा संस्कृत है। संस्कृत इंडो यूरोपियन भाषा परिवार की इंडोर ईरानी शाखा का अंग है। पाली और प्राकृत भाषा  भी इसी परिवार की है। 
प्राकृत के प्रमुख संस्करणों में  महाराष्टी,   शेर सैनी,  तथा  मगधी है।    अपभ्रंश प्राकृत की एक शाखा है।  द्रविड़ भाषा में तमिल के प्राचीनतम साहित्य और इतिहास है। 
  भाषाओं का भी अपना अपना इतिहास है और उसमें परिवर्तन भी हुआ है जैसे कालिदास की काव्य की संस्कृत, और ऋग्वेद की संस्कृत में बहुत   भिन्नता है। 

वेद

भारतीय इतिहास को जानने के लिए वेदों का अपना ही महत्व है।   हिंदू परंपरा में वेदों को  श्रुति  की श्रेणी में रखा गया ।  श्रुति का शताब्दी का अर्थ है  सुना हुआ
वेद शब्द की उत्पत्ति विद से हुई है जिसका अर्थ है। इसलिए वेद का तात्पर्य ज्ञान से है।  वेद चार प्रकार के हैं  ऋग्वेद,   सामवेद, यजुर्वेद  ओर अर्थ वेद।   ऋग्वेद सबसे पुराना वेद है। प्रत्येक वेद के चार अंग होते हैं।  संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और  उपनिषद।
ऋग्वेद संहिता 10 मंडलों में विस्तृत  1028   सुक्तो का संकलन है सामवेद में 1810 सूक्त है।  जो ऋग्वेद से लिए गए हैं।  यजुर्वेद में कर्मकांड से जुड़े तथ्यों को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है,  अर्थ वेद को सबसे नया वेट माना गया है जिनमें  सुक्तो  के अतिरिक्त  लोकप्रिय धार्मिक    व्यवहार को अधिक महत्व दिया गया है। 
ब्राह्मण  वेद  से जुड़ी   संहिताओं  की व्याख्या है। जिनमें यज्ञ से जुड़े कर्मकांड की विशद विवेचना की गई है।   आरण्यक में   यज्ञ से जुड़े  कर्मकांड की  दार्शनिक  व्याख्या है। 
उपनिषदों की संख्या 108 है,  13 को  मूलभूत  उपनिषदों की श्रेणी में रखा गया है।    वैदिक साहित्य के अंतर्गत   ऋग्वेद के दूसरे और सातवें मंडल तक के भाग को  सबसे प्राचीन माना गया है।
ऋग्वेद की रचना काल का समय  6000 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व
हालांकि कुछ इतिहासकारों ने  1500 ईशा  पूर्व से  1000 ईसा पूर्व तक। 
उत्तर  वैदिक काल का समय 1000   ईशा पूर्व से 50धर्म शास्त्र में धर्म के तीन रूप माने गए हैं श्रुति, स्मृति और सदाचार ।
रामायण और महाभारत
प्राचीन भारत के इतिहास को जानने के लिए रामायण और महाभारत प्रमुख है।
महाभारत में 18 पर्व है  इसकी मूल कथा  कौरव और पांडव दो  चचेरे भाइयों के बीच तथा तो कुल के बीच  युद्ध से पहले का युग है।  महाभारत की रचना  व्यास ने की है। 
महाभारत से जुड़े हस्तिनापुर कुरुक्षेत्र, पानीपत , मथुरा  है।  भीष्म  द्वारा दिए गए उपदेश और कृष्ण द्वारा अर्जुन को भगवत गीता के रूप में दिए गए विश्व विख्यात उपदेश महाभारत के अंश है।
रामायण की रचना बाल्मीकि ने की है।
रामायण के सात कांड में प्रथम  बालकांड और अंतिम  उत्तराकांड है।
मूल कथा  कौशल के राजकुमार राम की है।  राम कथा को एशिया के दूसरे भागों में  तिब्बत, म्यामार,  लाओस, कंबोडिया और इंडोनेशिया में बहुत अधिक लोकप्रियता मिली।
पुराण
पुराण शब्द का अर्थ है  प्राचीन
मान्यता के अनुसार पुराण की रचना व्यास ने की है। 18 माह पुराणों की श्रेणी में  विष्णु, नारद,   भागवत, गरुड़, पदम,  वराह, मत्स्य,   कुर्म, लिंग, शिव, अग्नि ,  ब्राह्मण,     ब्रह्मवैवर्त,  मारकंडेय, भविषय, वामन, और ब्रह्मा पुराण आते है।
धर्मशास्त्र
सस्कृत के धर्म शब्द की व्युत्पत्ति ध्र धातु से हुई है। जिसका अर्थ होता है धारण करना।
धर्म शास्त्र में धर्म के तीन रूप माने गए हैं श्रुति, स्मृति और सदाचार ।
बौद्ध ग्रंथ
बौद्ध धर्म से भारतीय इतिहास को जानने में सहायता मिलती है। बौद्ध धर्म के साहित्य को 9 सिद्धांत अथवा 12 अंग  तथा तीन बैठकों में बांटा गया है।
त्रिपिटक में पाली, चीनी और तिब्बती, भाषा का संस्करण है।  मगध क्षेत्र में बोली जाने वाली कई बोलियों के   मिश्रण से पाली भाषा का विकास हुआ था। त्रिपिटक की तीन खंड है,  सुत,  विनय, और  धम्मपिटक।
बौद्ध धर्म में सुत  संस्कृत में सूत्र  उन धार्मिक नियमों को कहते हैं।  जिन्हें बुद्ध ने स्वयं उपदेश के रूप में कहा था।
सुत्त पिटक में  बुद्ध की धार्मिक सिद्धांतों को संवाद के रूप में संकलित किया है।
विनय पिटक में संघ के  भिक्षु एवम्  भिक्षुनी  के लिए बनाई के नियमों का संग्रह किया गया है। इसमें प्रति मोक्ष को भी शामिल किया गया है।
अभिधम्मपिटक  को बाद में जोड़ा गया है  जिसमें सूत पिटक में वर्णित सिद्धांतों को  सुव्यवस्थित और अनुशासन के लिए  आवश्यक  सूचियों  का समावेश  किया गया है।
त्रिपिटक को  उप खंडों में विभाजित किया गया है जी ने निकाय कहते हैं।  सुत्त पिटक में पांच निकाय हैं   दीघ,  मझिम, संयुत,  आंगुत्र और खुधक।  बुद्ध से जुड़ी पूर्व जन्म की कथाएं जातक में  अंकित है।
पाली भाषा में संकलित बौद्ध साहित्य मिलिंदपन्हो अधिक प्रसिद्ध है।  इस साहित्य संबंध में इंडो ग्रीक शासक मिनांडर और बौद्ध  भिक्षु  नाग्सेन  के बीच दार्शनिक  बिंदुओं का  उत्तर दिया गया है।
श्रीलंका की पाली बौद्ध रचनाओं में  दीप वंश ओर  महा वंश में बौद्ध के  जीवन की कथा, बौद्ध संगीतियां, मौर्य सम्राट अशोक,  और श्रीलंका की राजवंश की जानकारी है।
संस्कृत में लिखी बौद्ध साहित्य में अश्वघोष की बुद्धचरित प्रमुख है। इस साहित्य से हमें  कई   प्राचीन भारतीय राजनीतिक जानकारियां मिलती हैं।

जैन ग्रंथ

भारतीय इतिहास को  जानने का एक अन्य स्रोत  जैन धर्म भी है।  जैन ग्रंथों को सामूहिक रूप से  सिद्धांत तथा आगम की  संज्ञा दी जाती है।  प्रारंभिक जैन ग्रंथ अर्द्ध मगधी ओर प्राकृत भाषा में  लिखे गए हैं।  जैन धर्म को  तीसरी शताब्दी में  2 शाखाओं में बांटा गया-   श्वेतांबर और दिगंबर।  श्वेतांबर शाखा के धर्म  सिद्धांत 12अंग,12 उवंग,10 पैन,6 चेय, 4 मूल सुत्रर, में  संकलित है। इसके अतिरिक्त नंदी सूत्र तथा अनुगोदर  जैसे अन्य संग्रह उपलब्ध होते हैं।  जैन धर्म की दोनों शाखाओं के धार्मिक सिद्धांत में ज्यादा अंतर नहीं है। उदाहरण के लिए  दिगंबर शाखा के द्वारा भी अंगों को धर्म के मौलिक स्रोत के रूप में  स्वीकार किया जाता है।
श्वेतांबर की मान्यता है कि  अंगों का संग्रह पाटलिपुत्र में बुलाई गई एक जैन संगति में किया गया था जबकि जैन धर्म साहित्य को पांचवी छठी शताब्दी में  देवधेमिशमश्रमण की  अध्यक्षता में गुजरात के  वलभी  स्थान पर लिपिबद्ध किया गया।  जैन धर्म का प्रसिद्ध मंदिर   दिलवाड़ा  का माउंट आबू में स्थित है।
जैन ग्रंथ से यह पता चलता है  कि  भारत के किस शासक ने जैन धर्म को अपनाया और उसका विस्तार किया।

संगम साहित्य और तमिल साहित्य 

भारतीय इतिहास को जानने में  तमिल साहित्य और संगम साहित्य का महत्वपूर्ण योगदान है। इन साहित्य से हमें पता चलता है कि  दक्षिण भारत में किन किन राजाओं और राजवंश ने राज किया।
दक्षिण भारत का प्राचीनतम साहित्य प्रारंभिक तमिल भाषा की रचनाओं के रूप में उपलब्ध है   जिन्हें संगम साहित्य के रूप में जानते हैं।  सातवीं सदी में  तीन संगम साहित्य का वर्णन किया गया है इनमें सबसे पहला मदुरई, दूसरा कपाट पुरम और  तीसरा पुनः मदुरई।
पांचवी सदी के बाद बहुत सी प्रसिद्ध तमिल रचनाएं नैतिक तथा दार्शनिक उद्देश्य से लिखी गई जैसे तिरुवल्लुवर की तिरिकुराल  इनमें सबसे प्रसिद्ध है।
तमिल महाकाव्य में लोकप्रिय शिलप्पडिकार्म और  मणिमेकलई  है।
पूर्व मध्यकाल में तमिल साहित्य में अलवार वैष्णव तथा नयनार शेव  संतो की रचनाएं  का वर्चस्व रहा।
वैष्णव तमिल रचनाओं का आरंभिक लेखन पेयलवर,पुत्तलवार, पॉयकेलवार  द्वारा किया गया।
आलवार वेपवम  वैष्णव संतो का  जीवन चरित संग्रह है।
शेव  भक्ति परंपरा की शुरुआत तिरूमुलार, और करिई काल अम्मीयार के  द्वारा की गई।
बाणभट्ट की हर्षचरित  भारतीय इतिहास को जानने में बहुत मदद करती है।

विदेशी लेखक

भारत का इतिहास कई विदेशी लेखकों ने लिखा जैसे    मेगस्थनीज की इंडिका,एरियन, स्ट्रबो, प्लिनी, अलबरूनी  आदि ऐसे लेखक हैं  जिन्होंने भारतीय इतिहास को लिखा है।

पुरातात्विक स्रोत

भारतीय इतिहास को जानने में  पुरातात्विक स्रोतों की महत्वपूर्ण भूमिका है। 1949 में  रसायन शास्त्री विल्डर लिबी के  द्वारा रेडियो कार्बन तिथि निर्धारण विधि का आविष्कार किया गया।   इसका प्रयोग पुरातात्विक स्थलों की तिथि को पता लगाने के लिए किया जाता है।
जैसे भारत में  पाषाण काल और नवपाषाण काल के ओजार  प्राप्त हुए हैं उनकी तिथि हरण रेडियो कार्बन के  डेटिंग अनुसार ही होता है।
अगर भारत में पुरातात्विक स्थलों की बात करें 
सिंधु घाटी सभ्यता, मोहनजोदड़ो, राख का टीला, सांची का स्तूप, जैन धर्म की मूर्तियां, प्राचीन काल के सिक्के  आती पुरातात्विक है।

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