बिस्मार्क कोन था |
बिस्मार्क का जीवन परिचय
बिस्मार्क का पूरा नाम ओटो एडुअर्ड लिओपोल्ड बिस्मार्क था और 20 मार्च का जन्म 1 अप्रैल 1815 को जर्मनी में हुआ था।
बिस्मार्क जर्मनी के महान पुत्रों में एक था उसने प्रशा के प्रधानमंत्री के रूप में जर्मनी का एकीकरण किया। बिस्मार्क ने रक्त और लौह की नीति अपनाकर सर्वप्रथम स्लेस्विंग ओर हॉलस्टीन पर प्रशासन पर नियंत्रण स्थापित किया। फिर ऑस्ट्रिया को सेडोवा के युद्ध में पराजित करके जर्मन राज्य को उसके प्रभाव से मुक्त करा लिया, क्या उसके बाद बिस्मार्क ने सीडान के युद्ध में फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय को पराजित करके जर्मनी का एकीकरण पूर्ण कर दिया।
8 जनवरी 1871 ईस्वी को प्रशा का सम्राट विलियम प्रथम महान जर्मन साम्राज्य का सम्राट घोषित हुआ।1871 इसवी में बिस्मार्क जर्मन साम्राज्य का प्रधानमंत्री बना 18 सो 90 ईस्वी में जर्मन सम्राट की सर्विस m23 से मतभेद हो जाने के कारण बिस्मार्क ने त्यागपत्र दे दिया। 31 जुलाई 1898 ईसवी को 83 वर्ष की आयु में बिस्मार्क की मृत्यु हो गई।
बिस्मार्क की विदेश नीति के उद्देश्य
1 यूरोप महाद्वीप में शांति की स्थापना करना
बिस्मार्क यूरोपीय महाद्वीप में शांति स्थापित करने का इच्छुक था उस समय यूरोप में पांच महा शक्तियां थी, ऑस्ट्रिया, फ्रांस, इटली, रूस और जर्मनी। विष्णु के रूप में शांति स्थापित रखने के लिए कम से कम 2 शक्तियों का सदैव जर्मनी का मित्र बनाए रखना चाहता था।
2 यथास्थिति की नीति
बिस्मार्क की नीति का उद्देश्य में मैं यथास्थिति को बनाए रखना था वह जर्मनी को तरतराष्ट्र कहता था। और यूरोप में समस्त राष्ट्र की सीमाएं वही रखने का इच्छुक था जो 1871 ई समय निर्धारित हो चुकी थी।
3 फ्रांस को यूरोपीय राष्ट्रों से पृथक करना
बिस्मार्क ने फ्रांस को सीडान के युद्ध में पराजित करके फ्रैंकफर्ट को की अपमानजनक शर्त को मानने के लिए विवश किया था। फ्रांस के अल्सास व लारेन प्रदेशों को भी जर्मनी ने छीन लिया था। फ्रांस अपने अपमान को भूल नहीं पाया था और वह जर्मनी से बदला लेना चाहता था, बिस्मार्क फ्रांस की भावना से पूर्ण परिचित था। वह इस बात को अच्छी तरीके से जानता था कि यदि फ्रांस यूरोपीय शक्तियों से पृथक रखा जाए तो कभी भी जर्मनी का सामना नहीं कर सकेगा इसलिए उसने अपनी विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य फ्रांस को यूरोपीय राष्ट्रों से पृथक करना निश्चित किया।
बिस्मार्क के समय पूरे यूरोप राजनीति में उथल-पुथल मची थी, बिस्मार्क ने अपनी कूटनीति का सहारा लिया और वह इन राजनीतिक पहेलियों को भलीभांति समझता था और वह अपनी परिस्थितियों को सरलता से अनुकूल बना लेता था। उसकी कूटनीतिक की ही उसकी सफलता का सबसे बड़ा कारण थे। बिस्मार्क से पूर्व जिन लोगों ने भी जर्मनी के एकीकरण करने का प्रयास किया वह सभी लोग असफल रहे अपने कूटनीतिक चालू से जर्मनी का एकीकरण करने में सफल रहा। फ्रांस अपनी पराजय और अपमानजनक संधि का बदला लेना चाहता था। लेकिन फ्रांस को बिस्मार्क ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों तक एक भी मित्र ना मिलने दिया इतना योग्य नहीं हो सका कि वह जर्मनी पर आक्रमण कर सके। बिस्मार्क ने शलेस्विग ओर होल्सटीन के युद्ध में फ्रांस एवं रूस को टेटस रखा और उसने फ्रैंकफर्ट की संधि से इच्छित प्रदेश अल्सेस ओर लारेन की प्राप्ति कर दी। तीन राष्ट का संघ और धूलकोट आदि का निर्माण करना, ऑस्ट्रिया से मैत्री संबंध रखना, रूस को विरोध करने का अवसर ना देना यह सभी बिस्मार्क की कूटनीतिक चाल थी।
बिस्मार्क ने उदारवादी सिद्धांत का खंडन किया था।
बिस्मार्क का मूल्यांकन
बिस्मार्क अपने युग का विशेष पुरुष और संपूर्ण विरोध की घटनाओं का केंद्र था, वह एक बाजीगर की भांति रोक के महान राष्ट्रों के साथ खिलवाड़ करता था। स्मार्ट नेपोलियन के बाद सबसे प्रभावशाली शासक रहा।
बिस्मार्क ने यह कहा था कि प्रशा के भविष्य का निर्माण सांसद नहीं बल्कि सेना करेगी।