वियना कांग्रेस vienna congress क्या थी?
नेपोलियन के पतन के बाद यूरोप में कुछ परिस्थितियां और समस्याएं पैदा हो गई थी । इन समस्याओं को सुलझाने के लिए ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में यूरोपीय राष्ट्रों का एक महत्वपूर्ण सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन को वियना कांग्रेस के नाम से जाना जाता है।
Vienna congress वियना कांग्रेस के सामने प्रमुख समस्या इस प्रकार थी
1 क्रांतिकारी तत्वों का दमन
नेपोलियन यूरोप का एक ऐसा शासक था जो पूरी दुनिया में राज करना चाहता था। वह लगातार एक से एक राज्य जीता गया लेकिन अंत में उसे वाटरलू के युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और उसे बंदी बना लिया गया। नेपोलियन के परास्त हो जाने के बाद फ्रांस का सैनिक गौरव भी मिट्टी में मिल गया था। लेकिन इससे नई प्रवृत्तियों का अंत नहीं हुआ। समानता स्वतंत्रता और भ्रतात्व के नारे युरोप में गूंज रहे थे। पुरानी संस्थाएं टूट रही नवीन युग का उदय हो रहा था। एक तंत्र की जगह लोकतंत्र प्रबल हो रहा था। परंतु इससे यूरोपी राष्ट्र खुश नहीं थे। अब यूरोप की राष्ट्र के सम्मुख यही प्रश्न था कि
था कि किन उपायों द्वारा क्रांति की भावनाओं का विनाश किया जाए और पुरातन व्यवस्था को फिर से कायम रखा जाए।
2 नेपोलियन के साम्राज्य की पुनर व्यवस्था
नेपोलियन ने अनेक राजवंश समाप्त कर अपने बंधु बांधव को उनका राज वंशी शासन सुपुर्द कर दिया था। अब समस्या यह थी कि किन विभिन्न राज्यों के शासन की क्या व्यवस्था की जाए और इस मसले पर भी भारी मतभेद थे।
3 चर्च की समस्या
राज्य क्रांति से फ्रांस और पश्चिमी यूरोप के अधिकांश प्रदेशों में चर्च की पुरानी व्यवस्था नष्टऔर अस्त व्यस्त हो चुकी थी। एंड तथा रोमन कैथोलिक चर्चों का मतभेद तो था ही, अब धर्म विरोधी विचार भी जोर पकड़ रहे थे। नेपोलियन ने चर्च को पूर्ण रूप से राज्य का कठपुतली बना दिया था। पोक को कैद करके तथा उसके राज्य को अपने कब्जे में कर के नेपोलियन ने चर्च के संपूर्ण गौरव को ही मिट्टी में मिला दिया था। नेपोलियन के बाद विजित राष्ट ओर राजनीतिज्ञों के सम्मुख चर्च की पुनर व्यवस्था का भी प्रशन था।
4 यूरोप में शांति रक्षा के उपाय
सबसे प्रमुख समस्या यह थी यूरोप में पुनः युद्ध की संभावनाओं को कम करना। सभी राजनीतिक की सोच रहे थे कि यदि उस गुट को कायम रखा जाए जिसने नेपोलियन को पराजित किया था।, तो भविष्य में युद्ध की संभावनाओं को कम करने के उपाय खोजे जा सकते हैं। इस समेलन में शक्ति संतुलन की बात कही गई।
5 नेपोलियन की सहायता करने वाले राज्य को दंडित करना।
वियना कांग्रेस Vienna congress के मुख्य प्रतिनिधि
वियना सम्मेलन यूरोप के इतिहास का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और भव्य अधिवेशन था। इतिहास में इससे पहले कभी प्रसिद्ध नेताओं व राजनीतिज्ञ का सामूहिक महत्व के विषयों पर विचार करने के लिए इतना बड़ा सम्मेलन नहीं हुआ था। इस सम्मेलन में 4 व्यक्तियों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1 मेटरनिख
वियना सम्मेलन में भाग लेने वाली कूटनीति में यदि कोई असाधारण व्यक्ति था तो वह मेटरनिख ही था। ऑस्ट्रिया का यह चांसलर इस सम्मेलन का सभापति बना। उसमें जटिल समस्याओं को सरलता से सुलझा ने की अपूर्व क्षमता थी। वह क्रांति की भावनाओं को नष्ट करके पुरातन व्यवस्था को फिर से कायम करने के पक्ष में था। उसका सिद्धांत था कि क्रांति ऐसी बीमारी है जिसका इलाज किया जाना चाहिए। उसका मत था कि राजाओं को अधिकार है कि अपनी प्रजा के भाग्य का निपटारा करें। राजा केवल ईश्वर के प्रति उत्तरदायित्व है जनता के प्रति नहीं। उसका निश्चित मत था कि यूरोप को स्वतंत्रता की नहीं बल्कि शांति और व्यवस्था की आवश्यकता है। उसके विचार और राजनीतिक के विचार मेल खते थे। सभी राजनीतिज्ञ यह चाहते थे कि जनता के अधिकारों की उपेक्षा की जाए।
सम्मेलन में मेटरनिख की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण रही। यूरोप के सभी व्यक्ति उससे प्रभावित थे। सम्मेलन में वह छाया रहा। लोगों ने उसे सम्मेलन का नैतिक तानाशाह और भंवरो से भरे हुए तालाब में मछली के समान सफल तेराक तक कह डाला।
अलेक्जेंडर प्रथम
बीना सम्मेलन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वालों में से जार अलेकजांडर भी था। इतिहास में रूस ने प्रथम बार यूरोप का नेतृत्व किया था। इंग्लैंड और ऑस्ट्रिया उसकी बढ़ती हुई शक्ति से शंकित थे। यद्यपि एलेग्जेंडर मेटरनिख के सामान ना कूटनीतिज्ञ था और ना ही चतुर पर उसकी विशाल सैन्य शक्ति के कारण उसके शब्द विशेष वजन रखते थे। वह एक कल्पना प्रिय अस्थिर और आदर्शवादी सम्राट था जिसे मेटरनिख पागल समझता था, लेकिन जिस के प्रस्तावों की अवेहलना करना साधारण बात ना थी।
नेपोलियन को पराजित करने में महत्वपूर्ण योगदान था। उसने इस सम्मेलन में दास प्रथा के उन्मूलन और राष्ट्र संघ की स्थापना मुद्दे उठाए थे।
3 तेलेरा
यह एक पराजित देश का प्रतिनिधि होते हुए इसने सम्मेलन के निर्णय पर विजई देशों के प्रतिनिधियों के समान प्रभाव डाला।। उसने फ्रांस के विदेश मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की । उसने कूटनीतिझ के मतभेदों का लाभ उठाकर अपने देश को आर्थिक हर जाने से बचाया।
4 कसलारे
यह इंग्लैंड का चतुर कूटनीतिज्ञ था उसका व्यक्तित्व भी बड़ा प्रभावशाली था। उसकी नीति का मुख्य उद्देश्य यूरोप में किसी भी एक राष्ट्र को शक्तिशाली बनने से रोकना। शक्ति संतुलन के सिद्धांत को पुनः स्थापित करना था। उसकी सफल कूटनीति से रूस , प्रशा, ऑस्ट्रिया नेपोलियन से पृथक संधि नहीं कर पाए।
इस सम्मेलन में स्वयं आस्ट्रिया के सम्राट फ्रांसीसी प्रथम तथा प्रशा के राजा फ्रेडरिक विलियम ने भी इस सम्मेलन में भाग लिया।
वियना कॉन्ग्रेस Vienna congress एक महान अधिवेशन था जिसमें यूरोप के भाग्य का निपटारा होना था। लेकिन इसकी कोई निश्चित कार्यप्रणाली नहीं थी। इस सम्मेलन का कोई निश्चित सभापति नहीं था। मेटरनिख ही प्रधान और मंत्री दोनों का कार्य करता था। वह जिस ढंग से चाहता कार्य चलाता था।
ऑस्ट्रिया,प्रशा , रूस, ओर इंग्लैंड चार मुख्य राज्य आपस में मिलकर फैसला कर लेते थे। अंतिम संधि 1815 में हुई।
यह जानकारी देने के लिए बहुत धन्यवाद।