जुलाई 1964 में एक आयोग डॉ डीएस कोठारी की अध्यक्षता में नियुक्त किया गया जैसी सरकार को शिक्षा के सभी पक्षों तथा प्रकरणों के विषय में राष्ट्रीय नमूने की रूपरेखा, साधारण सिद्धांत तथा नीतियों की रूपरेखा बनाने का आदेश था। इंग्लैंड, अमेरिका ,रूस इत्यादि से प्रमुख शिक्षा शास्त्री तथा वैज्ञानिक इससे संबंध किए गए। यूनेस्को सचिवालय ने जे, एफ मेकडूगल की सेवाएं भी उपलब्ध कराई। जिन्होंने एक सहकार सचिव के रूप में आयोग में कार्य किया।
आयोग ने यह स्वीकार किया कि शिक्षा तथा अनुसंधान दोनों ही एक देश की समस्त आर्थिक सांस्कृतिक तथा विकास और प्रगति की निर्णायक है। इसने वर्तमान पद्धति की कठोरता की आलोचना की और शिक्षा नीति में उस लचीलापन की आवश्यकता की आवश्यकता पर बल दिया जो बदलती हुई परिस्थितियों के अनुकूल हो उसका विश्वास था कि बहुत देश में शैक्षणिक क्रांति लाने की दिशा में प्रथम चरण होगा।
कोठरी शिक्षा आयोग |
रिपोर्ट ने मुख्य निम्नलिखित सुझाव दिए
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1 शिक्षा की सभी स्तरों पर सामान्य शिक्षा के अनिवार्य रूप में समाज सेवा कार्य अनुभव जिसने हाथ से हाथ काम करने का उत्पादन अनुभव इत्यादि शामिल हो, आरंभ किए जाने चाहिए।
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2 नैतिक शिक्षा तथा सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना उत्पन्न करने पर बल दिया गया। विद्यालयों को अपने उत्तरदायित्व को समझना चाहिए कि उन्हें युवकों को विद्यालय के संसार से कार्य तथा जीवन की संसार में आने में सहायता देनी चाहिए है।
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3 माध्यमिक शिक्षा को वेबसाइट बनाया गया।
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4 उन्नत अध्ययन केंद्रों को अधिक सुदृढ़ बनाया जाए और बड़े विश्वविद्यालयों में एक छोटी सी संस्था ऐसी बनाई जाए जो उच्चतम अंतरराष्ट्रीय मानकों को प्राप्त करने का उद्देश्य रखें।
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5 विद्यालयों के लिए अध्यापक के परीक्षण तथा श्रेणी पर विशेष बल दिया जाए।
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6 शिक्षा पुनर्निर्माण में कृषि, कृषि में अनुसंधान तथा इससे संबंधित विज्ञानों को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
शिक्षा की राष्ट्रीय नीति
मुख्यतः कोठारी आयोग की सिफारिशों पर आधारित करके 1968 में भारत सरकार ने जा पर एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें निम्नलिखित तथ्यों पर बल दिया गया था:-
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1 14 वर्ष की आयु तक अनिवार्य तथा निशुल्क शिक्षा।
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2 अध्यापकों के लिए पद तथा वेतन वृद्धि।
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3 तीन भाषाई फार्मूले को स्वीकार करना और क्षेत्रीय भाषाओं का विकास।
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4 विज्ञान तथा अनुसंधान की शिक्षा का सामान्य करण।
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5 कृषि तथा उद्योग के लिए शिक्षा का विकास।
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6 पाठ्य पुस्तकों को अधिकतम बनाना और शक्ति पुस्तकों का उत्पादन।
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7 राष्ट्रीय आय का 6% शिक्षा पर खर्च करना।
नवीन शिक्षा नीति 1986
हमारी नवीन शिक्षा नीति का उद्देश्य हमारे गति हिना समाज को ऐसे गतिशील समाज में परिवर्तित करना है जिसमें विकास तथा परिवर्तन की वचनबद्धता हो इस नीति के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार है:-
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200 इसवी तक इस समय की 36% आरक्षकता को बढ़ाकर 56% कर देना।
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प्रारंभिक शिक्षा को सर्वव्यापी बनाना।
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उच्चतर माध्यमिक शिक्षा को व्यवसाय बनाना यह लक्ष्य 1990 तक 10% विद्यार्थी इस परिस्थिति में आ जाए और 1995 तक 25%।
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उच्च शिक्षा में सुधार लाना ताकि अर्थव्यवस्था की आधुनिकरण में सार्वभौमिकता में निहित जो समस्याएं विद्यमान है उन्हें साक्षरता ने के लिए काफी प्रेरित जनशक्ति को प्रशिक्षित करना।
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शिक्षा का सामाजिक प्रसंग होना चाहिए और पाठ्यचर्या ऐसी बनाई जाए जिससे विद्यार्थी के मन में संविधान में दिए गए उत्तम सिद्धांत घर जाएं अर्थात
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वे राष्ट्रीयता में गौरव का अनुभव करें।
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यह धार्मिक निरपेक्ष तथा सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के प्रति वचनबद्ध हो।
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विदेश की एकता तथा अखंडता के प्रति खड़े रहे।
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वे अंतरराष्ट्रीय पति पति के नियम में कट्टर विश्वासी बन जाए।