द्वितीय विश्व युद्ध second world war कब हुआ ओर इसके कारण थे और इस युद्ध के क्या परिणाम हुए

 प्रथम महायुद्ध 1918 में समाप्त हुआ और उसके 20 वर्ष का अंतराल आया। 24 वर्ष का अंतराल  विश्वव्यापी के घाव को भरने के लिए  कोई खास अंतराल नहीं था। अभी इसकी खाओ ठीक भी नहीं हुए थे कि 1939 को द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया। प्रथम महायुद्ध को  देखते हुए लोगों ने यह सोचा था कि प्रथम महायुद्ध की तुलना में द्वितीय विश्व युद्ध नहीं हो सकता है और यदि हुआ तो यीशु चलकर भंग हो जाएगा। 1919 में लोगों ने आशा व्यक्त की थी कि भविष्य में पुरानी त्रुटियों को दोहराया नहीं जाएगा और कोई भी राष्ट्र वास्तविक शक्ति का स्थान ग्रहण नहीं कर सकेगा।

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द्वितीय विश्व युद्ध के कारण

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1  वर्साय की संधि और जर्मनी में उग्र राष्ट्रवाद

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वर्साय की संधि में जर्मनी को  नीचा दिखाया गया था। अता जर्मनी बदला लेने के लिए तत्पर हुआ। जर्मनी के ऊपर वर्साय की संधि थोप दी गई थी और जर्मनी क्रांति  नाजी क्रांति से बल मिला। नाजी क्रांति ने जर्मनी में एक नई आशा का संचार किया। हिटलर ने जर्मनी के लिए आत्म निर्णय की अधिकारी की मांग की। संपूर्ण जर्मन राष्ट्र में करो या मरो के सिद्धांत का उतारू हो गया। हिटलर ने जर्मनी को अनिवार्य सैनिक कारण कर दिया। उसने ऑस्ट्रिया का अपहरण कर लिया। चोकोस्लाविया पर आक्रमण कर लिया।  हिटलर की नीतियां अर्थात उग्र राष्ट्रवाद जर्मनी ने युद्ध को अनिवार्य कर दिया था।

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2  तानाशाही का उत्कर्ष

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इस समय कई देशों में तानाशाह का उत्कर्ष हुआ चीन के कार्य और उग्र नीति ने द्वितीय महायुद्ध को अनिवार्य बना दिया। जर्मनी में हिटलर तानाशाह बन गया और इटली में    मुसेलिन। स्पेन में हिटलर और मुसोलिनी द्वारा समर्थित  जनरल  फ्रेंको की तानाशाही सरकार स्थापित हुई। जापान में साम्राज्यवादी भावनाएं पनप रही थी और उसकी वजह से उसने रात संघ की उपेक्षा करके मंचूरिया पर आक्रमण कर दिया। रोम बर्लिन टोक्यो धुरी ने  स्थिति को संकट नए बना दिया जो  द्वितीय विश्वयुद्ध का अनिवार्य कारण  बना।

अल्पसंख्यक जातियों में असंतोष 

वर्साय की सन्धि के  और अन्य संधियों के द्वारा विभिन्न अल्पसंख्यक जातियों का निर्माण हो गया। राष्ट्रपति विल्सन ने आत्म निर्णय के सिद्धांत को शांति संधि का आधार बनाना चाहा इस सिद्धांत को सभी जगह लागू करना संभव नहीं था। अन्य देशों में अल्पसंख्यक जातियों के बीच तीव्र असंतोष बढ़ता गया हिटलर ने इस असंतोष का पूरा लाभ उठाया। उसने पश्चिमी शक्तियों से सौदेबाजी की। अल्पसंख्यकों पर कुशासन की आड़ में उसने आश्चर्य और सूडान प्रदेशों पर बलपूर्वक कब्जा कर लिया तथा पोलैंड पर हमला बोल दिया।

राष्ट्र के विभिन्न स्वार्थ

आर्थिक समानता की होड़, हजारों की खोज, कच्चे माल प्राप्त करने की सुविधा आदि ने विभिन्न राष्ट्रों में पारस्परिक संघर्ष को प्रोत्साहन दिया। प्रत्येक राष्ट्र अपने स्वार्थ के लिए कार्य करने लगे। अंतराल रिकॉर्ड के लिए कोई स्थान ना रहा। प्रथम महायुद्ध के बाद जर्मनी के उपनिवेश बिटवीन बेल्जियम और फ्रांस ने बाट लिए। आता इन देशों में कच्चे माल प्राप्त करने की सुविधा बढ़ गई और दूसरी  इटली ओर जर्मनी इत्यादि देशों को भारी हानि हुई। अतः यह राष्ट्र कच्चे माल के लिए  नई उपनिवेश स्थापित करने और विदेशी बाजारों में अपनी मालती सफेद करने का उपाय सोचने लगे।, तेल, कोयला, लोहा आदि की कमी ने इटली को साम्राज्यवादी नीति अपनाने के लिए विवश किया। जापान अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या के निवास के लिए और औद्योगिकरण के साधन जुटाने के लिए चीन में पैर जमाने की कोशिश करने लगा और इस प्रकार विरोधी स्वार्थ द्वितीय विश्व युद्ध का अग्रदूत बन गया।

विश्व का दो गुटो  विभाजन

विश्व दो गुटों में बढ़ गया था एक तरफ जर्मनी इटली और जापान जैसे  राष्ट्र  शामिल थे जो वर्साय की संधि का विरोध कर रहे थे तथा अधिनायकवाद के समर्थक थे। इन तीनों ने मिलकर रोम बर्लिन टोक्यो धुरी का निर्माण कर लिया। दूसरी ओर मित्र राष्ट्रों में  इंग्लैंड फ्रांस और रूस  मित्र राष्ट्र का एक संगठन बन गया। प्रत्येक गुड विश्व पर हानि होना चाहता था और यह भी एक प्रकार से  द्वितीय विश्व युद्ध का कारण बन गया।

राष्ट्र संघ की असफलता

राष्ट्र संघ की स्थापना  के बाद  प्रथम वर्ल्ड वॉर के बाद अंतर्राष्ट्रीय शांति स्थापित करने और युद्ध को रोकने के लिए की गई थी। शुरू में राष्ट्र संघ ने  फिनलैंड, स्वीडन, इटली और यूनान के बीच संघर्षों का निपटारा भी किया।  बाद में इसकी साख घटती चली गई। जब जापान ने मंचूरिया पर आक्रमण किया और इटली ने अबिसिनिया ले लिया तब  राष्ट्र संघ कुछ नहीं कर पाया। महा शक्तियों को उसका सहयोग प्राप्त नहीं हुआ। राजनैतिक मामलों से संघ का स्वयंवर या अनेक बार पक्षपातपूर्ण रहा। इसके अतिरिक्त राष्ट्र संघ की चेष्टा छोटे राष्ट्र को दबाने की ही रही जबकि बड़ी राष्ट्रों के विरुद्ध वह कुछ भी कर सकने में असमर्थ रहा यूरोपीय देशों ने राष्ट्र संघ ने  अपनी प्रतिष्ठा को दी तथा  शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए विभिन्न गठबंधन किए गए। यूरोपीय देशों में एक दूसरे के विरुद्ध इतनी राजनीतिक और सैनिक संगठन हुई थी उनसे संपूर्ण अंतरराष्ट्रीय वातावरण प्रभावित हो गया।  सभी राष्ट्र में सशस्त्र की होड़ को राष्ट्र संघ दबा नहीं सका। ऐसा समझा जाता है कि यदि राशन सफल हो जाता तो शायद युद्ध  नहीं होता।

निशस्त्रीकरण की असफलता

निशस्त्रीकरण वर्साय संधि के अंतर्गत वह योजना थी जिस ने जर्मनी को पूर्ण रूप से शक्तिहीन रखने के लिए प्रयुक्त किया था और इसी के अंतर्गत क्यों सुझाव दिया गया था कि अन्य राष्ट्रों के लिए भी इसका प्रयोग सीमा तक लागू किया जाएगा इससे सुरक्षा की संभावना स्थापित हो सके। हकीकत में यह हुआ कि राष्ट्र  दूसरे राष्ट्  निशस्त्रीकरण की सलाह देते रहे और स्वयं शस्त्रों से लैस रहती थे। ऐसे में जर्मनी ने निशस्त्रीकरण को शिव का नहीं किया। उसने अपनी सीमा पर किलेबंदी की जिसे शिगफ्रिड  लाइन कहां जाता है। फ्रांस ने भी अपनी उत्तरी पूर्वी सीमा पर किले की श्रंखला बनाई जिसे  मैजिनी लाइन कहां जाता है। इस प्रकार निशस्त्रीकरण मात्र के एक औपचारिक वार्ता थी 1936 तक तो अनेक राष्ट्र ने युद्ध की ऐसी स्थिति तैयार कर ली  कि वे निशस्त्रीकरण की बात सुनने को तैयार नहीं थी। चारों ओर ऐसा बात अब उत्पन्न हो गया था कि निकट भविष्य में युद्ध अनिवार्य रूप से होना था।

हिटलर ने जर्मनी को  हथियारों से  लैस करने की योजना बनाई।

मित्र राष्ट्र के आंतरिक मतभेद

मित्र राष्ट्र की पारस्परिक मतभेदों ने जर्मनी और इटली की शक्ति के विकास में बड़ा योगदान दिया। क्षतिपूर्ति की समस्या पर ब्रिटेन और फ्रांस के बीच मतभेद उत्पन्न हो गए थे और हिटलर के कदम से ब्रिटेन और फ्रांस ने तुष्टीकरण की नीति अपनाई। फल स्वरुप मित्र राष्ट्र उसके विरुद्ध कोई कार्रवाई न कर सके इसके अतिरिक्त वर्साय की संधि के अनुसार ब्रिटेन और अमेरिका को फ्रांस की सुरक्षा का दायित्व वाहन करना था किंतु अमेरिकी सीनेट ने इस संधि को अस्वीकृत कर दिया जिससे अमेरिका यूरोपीय से ठीक  अलग हो गया। अमेरिका के अलग होने पर ब्रिटेन ने फ्रांस को सुरक्षा का आश्वासन देने से इनकार कर दिया फलता फ्रांस निराश होकर  पोलैंड और बेल्जियम और चोकोस्लाविया से  अलग-अलग  संधि कर ली।  दोनों को इस प्रकार मतभेद और जर्मनी और इटली के प्रति तुष्टीकरण की नीति को देखकर तानाशाह का हौसला बढ़ता गया। इधर मित्र राष्ट्र और  रूस के बीच तीव्र  मतभेद थे।  इंग्लैंड साम्यवादी विचारधारा को रोकना चाहता था और इसलिए बहुत जर्मनी की बढ़ती शक्ति में रुचि ले रहा था और उसने अपनी नीति पर परिवर्तन किया। इस प्रकार मित्र राष्ट्रों में आपसी अविश्वास के कारण द्वितीय विश्व युद्ध होना संभव था।

Second world war
Second world war


इंग्लैंड और फ्रांस की दृष्टिकोण में अंतर 

दोनों महायुद्ध के बीच इंग्लैंड और फ्रांस में निरंतर मतभेद विद्यमान रहे।  इंग्लैंड शक्ति संतुलन की नीति पर चला जबकि फ्रांस ने स्वयं को हर तरह से सुरक्षित करके यूरोप का सबसे अधिक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने की नीति अपनाई। इंग्लैंड ना तो जर्मनी को उल्लू बनाना चाहता था और ना फ्रांस को एकदम शक्तिशाली देखना चाहता था अतः जहां सांस ने जर्मनी को सदा कमजोर बनाने का प्रयत्न किया वहां  इंग्लैंड ने जर्मनी की आर्थिक दृष्टि से मजबूत  बनाने के लिए आर्थिक दृष्टि से मदद की। इंग्लैंड दुकानदारों का राष्ट्र था। हिटलर की विदाई के बाद भी फ्रांस और इंग्लैंड के मतभेद शांत नहीं हुए थे। इंग्लैंड  जर्मनी के प्रति उदारवादी तुष्टीकरण की नीति अपनाता रहा। स्कोर इंग्लैंड की नीति के पास नहीं पड़ी। इन दोनों महान राष्ट्रों में मतभेद तलाशी राजनीति को कटु बना दिया और इन दोनों महान राष्ट्र के मतभेदों का  धुरी राष्ट्र ने भर भर के फायदा उठाया। वे स्वयं को अत्यधिक शक्तिशाली बनाती है तथा फ्रांस की सुरक्षा संगठनों को कमजोर करते गए और राष्ट्र संघ की अवहेलना करने में सफल हुए। 

इटली और जापान का  उग्र राष्ट्रवाद  और सैनिकवाद

जर्मनी की भर्ती इटली और जापान भी उग्रवाद और सैनिक वक्त के कट्टर अनुयाई थे। मुसोलिनी  युद्ध का पुजारी था। उसके लिए युद्ध जीवन  और शांति मृत्यु थी। जापान के नेता भी  उग्रसैनिक वाद थे। इटली जापान और जर्मनी ने किसी भी देश के उपनिवेश खेलने की किसी भी अवसर को छोड़ने  नहीं चाहा था। तीनों धुरी राष्ट्र ने सैनिक राष्ट्रवाद से आंत्राक्षी क्षेत्र में घोर संकट उपस्थित कर दिया और अंतरराष्ट्रीय वाद की शक्तियों को पीछे धकेल दिया। इन सब घटनाओं की परिणति  द्वितीय  विश्व युद्ध का  कारण बनी।

स्पेन का गृहयुद्ध और धुरी राष्ट्रों का समर्थन

जनरल फ्रैंको ने  1930 में  स्पेन में गृह युद्ध प्रारंभ कर दिया। इसमें इंग्लैंड और फ्रांस स्टेटस रहते हुए भी गुप्त रूप से जनरल फ्रैंको के प्रति सहानुभूति रखते थे। उन्होंने उदारवादी गणतंत्र सरकार को कोई उल्लेखनीय सहायता नहीं दी। और हिटलर और मुसोलिनी ने फ्रांकों को खुलकर सक्रिय सहयोग दिया।  स्वरूप 1939 में स्पेन का प्रजातंत्र बह गया और वहां फ्रैंको की  तानाशाही स्थापित हो गई।

अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संकट

1930 के महान आर्थिक संकट ने  प्रत्येक देश को प्रभावित किया। इस आर्थिक संकट के फल स्वरुप रास्तों से निशस्त्रीकरण की भावना लुप्त हो गई  और विराट शास्त्र की होड़ में लग गए।  अनेक राष्ट्रों युद्ध के प्रेमी बन गए ताकि उनके माल की खपत बड़े और कारखाने बंद ना हो। आर्थिक संकट ने जर्मनी में नाजीवाद की उठाई में सहायता पहुंचाई और इटली में फासीवाद को बढ़ावा दिया ।  इस आर्थिक संकट का लाभ उठाकर जापान ने मंचूरिया और इटली के एबीसीनिया पर आक्रमण कर दिया।  के कारण जीरो के अनेक देशों में साम्यवादी दलों का प्रचार और प्रभाव बढ़ने लगा।

विचारधाराओं में फर्क

तानाशाही और प्रजातंत्र की विचारधारा अलग अलग थी। मूल रूप में युवक राज्य में व्यक्ति के प्रति उनकी राष्ट्र  विभिन्न प्रवृतियां थी। प्रजातंत्र राज्यों में व्यक्ति निर्माता था और राज्य के कार्यों में  लाभ भोगी ही लाभग्रही था। प्रजातंत्र वादी अच्छी विस्तार में विश्वास नहीं रखती थी जबकि  धुरी राष्ट्र का उसमें विश्वास था। हिटलर के तहत जर्मनी यह समझने को तैयार नहीं थे कि इंग्लैंड और फ्रांस के पास अधिक उपनिवेश क्यों होनी चाहिए और उनके पास कुछ भी क्यों नहीं। हिंदू विचारधारा और रावण ने विश्व को दो भागों में बांट दिया।

प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय संगठन का भाव

विश्व दो खेमों में बैठने जा रहा था  ऐसे में कोई प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय संगठन नहीं था जो उन्हें एक प्लेटफार्म पर ला सकता था या उनका समझौता करवा सकता था।  राष्ट्र संघ की कोई बात नहीं सुनता था यहां तक की  कई  देश  राष्ट्र संघ से अलग हो जाती थे।

तत्कालीन कारण

प्रथम विश्व युद्ध का तत्कालीन कारण हिटलर ही बना। जब हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण किया और एक 1939 को  हिटलर ने पोलैंड  पर चढ़ाई चढ़ने शुरू कर दी। 3 सितंबर को ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी को युद्ध बंद करने की चेतावनी दी। थोड़ी समय में यह युद्ध भयंकर युद्ध बन गया। हिटलर ने इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल को भी धोखा दे दिया और  हिटलर ने इंग्लैंड की राजधानी लंदन पर आक्रमण कर दिया।

यह सभी कारण  द्वितीय विश्व युद्ध के उत्तरदाई थे।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई  महत्वपूर्ण घटनाएं

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पूरे विश्व में महत्वपूर्ण घटनाएं घटी जैसे-

पश्चिमी यूरोप  युद्ध होने से पूर्व  एक दम शांत बैठा था

और युद्ध की इस अवधि को वाक युद्ध के नाम से जाना जाता है।

रूस और फिनलैंड के बीच  शीट युद्ध की 1940 में समाप्ति लेकिन कुछ दिनों बाद  हिटलर ने  नार्वे और डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया  और इस युद्ध में नॉर्वे और डेनमार्क की सहायता इंग्लैंड ने की।

हिटलर ने फ्रांस और पोलैंड पर आक्रमण करके  ताडीत युद्ध प्रणाली को जन्म दिया,  इस प्रणाली में  लड़ाकू हवाई जहाजों का प्रयोग किया गया।  जर्मनी ने फ्रांस पर  आक्रमण करने के बाद इंग्लैंड पर आक्रमण करने की नीति तैयार की।

1940 में जर्मनी ने इंग्लैंड की राजधानी पर हमला कर दिया और यह हमला हवाई हमला था। विश्व में पहली बार हवाओं पर  युद्ध हुआ। इसमें जर्मनी को हार का सामना करना पड़ा था। इस युद्ध में  इंग्लैंड की रॉयल नेवी ने डटकर जर्मनी का सामना किया।

1941 में हिटलर ने रूस के संग संधि का उल्लंघन करके  रूस पर ही आक्रमण कर दिया। जर्मनी सेना का शीत ऋतु का अनुभव है  वैसा था जैसे  नेपोलियन का था।

7 नवंबर 1941 को जापान ने अमेरिका के पर्ल हार्बर में  हवाई हमला कर दिया। इसके बाद अमेरिका ने जर्मनी के  विरोध में युद्ध की घोषणा कर दी।



द्वितीय विश्व युद्ध के प्रभाव एवं परिणाम

द्वितीय  महायुद्ध लगभग 6 वर्ष तक चला । यह मानव इतिहास का सर्वाधिक  भयानक युद्ध था इतना व्यापक प्रभाव कारी था कि उसके साथी एक अध्याय अथवा एक  युग का अंत हो गया।  द्वितीय विश्व युद्ध के निम्नलिखित परिणाम और प्रभाव हुए-

1  विनाश

महायुद्ध काल में दोनों पक्षों को अपार क्षति  उठानी पड़ी।  युद्ध में कुल  मिलाकर  22000000 व्यक्ति मारे गए कथा 3 करोड़ 30 लाख घायल हुए। करोड़ों असैनिक नागरिकों का जीवन  विस्फोट के कारण नष्ट हो गया। महायुद्ध में इंग्लैंड, जापान, जर्मनी,  इटली, रूस, आदि बड़े राष्ट को अपार क्षति हुई और छोटे राष्ट को भारी नुकसान उठाना पड़ा।  पोलैंड , चोकोस्लाविया, ऑस्ट्रिया और युगोस्लाविया डेनमार्क आदि की। अकेले पोलैंड की साठी लाख से ज्यादा व्यक्ति मारे गए।

इस युद्ध में सैनिकों के अलावा  नागरिकों का जीवन भी समाप्त हो गया। और गरीब दोनों गोलीबारी की चपेट में आ गया।

सामाजिक आर्थिक प्रभाव

सर्वसाधारण के लिए अपने दैनिक जीवन की आवश्यकता को पूरा करना ही कठोर समस्या बन गई। मजदूरों को मिलना कठिन हो गया। स्त्रियों को खान खोदना और सरकारी कार्यालय में काम करना शुरू किया। विश्व की संपूर्ण राष्ट्र को अमेरिका से माल मांगना पड़ा

अमेरिका में औद्योगिक विकास पूर्ण रूप से हुआ तथा पूंजीवाद का उदय हुआ। इस प्रकार दो गुट हो गए अमेरिकन पूंजीवाद और दूसरी ओर सोवियत संघ साम्यवादी ।

विज्ञान पर प्रभाव

द्वितीय महायुद्ध में इंजीनियरों ने कुछ  सैनिक पुल बना डाले,  तेल के नल इंग्लिश चैनल के नीचे से बिछा दिए , जंगलों को हवाई अड्डे में बदल डाला और अत्यधिक खर्चीली सैनिक सड़कों को बनाने के लिए बड़ी-बड़ी बाधाओं को जीत लिया। युद्ध में कई लोग घायल भी हुए थे उनके उपचार करने के लिए डॉक्टर की एक समस्या थी।

साम्राज्य के अंत की एक प्रक्रिया

यूरोपीय देशों के साम्राज्य में स्वतंत्रता की भावना उत्पन्न हो गई। परिस्थितियों से बाद होकर महा युद्ध के बाद अंग्रेजी साम्राज्य ने  अपनी नीति में परिवर्तन करके भारत वर्मा पाकिस्तान मिश्रा आदि देशों को स्वतंत्रता प्रदान की।

द्वितीय विश्व युद्ध के अंत होने के बाद यह बहुत से देशों को आजादी प्राप्त हो गई।  जर्मनी दो भागों में विभाजित हो गया था पश्चिमी जर्मनी और पूर्वी जर्मनी। पश्चिमी जर्मनी मित्र राष्ट्रों के प्रभाव में आया पूर्वी जर्मनी  रूस के प्रभाव में आया।

इटली में प्रजातंत्र की स्थापना

इटली ने सर्वप्रथम अपनी पराजय स्वीकार की। एक तरफ इटली में साम्यवाद का उदय हुआ और दूसरी तरफ इटली में लोकतंत्र सरकार स्थापित करने के लिए दल बंदी का जन्म हुआ। मित्र राष्ट्र के सहयोग से साम्यवादी दल की पराजय हुई और प्रजातंत्र की स्थापना हुई।

जर्मनी का विभाजन

विश्वयुद्ध का सारा दोष जर्मनी पर पड़ा। संपूर्ण जर्मन राष्ट्र को इंग्लैंड फ्रांस और रूस और अमेरिका में विभक्त कर दिया। यह विभाजन अंतरराष्ट्रीय कलह का कारण बना गया। जर्मनी नेताओं में महाभियोग चलाया गया और जो अपराधी सिद्ध हुए उन्हें कठोर दंड दिया गया। किसी परस्त देश के निवासियों पर अभियोग चलाना विश्व की प्रथम घटना थी।

जापान में प्रजातंत्र की समाप्ति

द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम स्वरूप जापान में राष्ट्रपति शासन व्यवस्था समाप्त हो गया तथा शासन पर अमेरिका ने अधिकार कर लिया और अमेरिका ने जापान में लोकतंत्र सरकार की स्थापना कर दी इस प्रकार जापान में प्रथम बार प्रजातंत्र शासन की स्थापना हुई।

रूस का एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उदय होना

द्वितीय विश्व युद्ध के फल स्वरुप सार्वजनिक लाभ यदि किसी राज्य को पहुंचा था वह रूस था। उसकी राज्य में आधा पोलैंड ,स्टोनिया, लेटविया, फिनलैंड तथा पूरी प्रसाद का भाग शामिल हो गया। रूस यूरोप का अत्यंत शक्तिशाली देश बन गया और यहां आज और विदेशी  नीति में रूस का प्रभाव बढ़ गया।  हंगरी और युगोस्लाविया  आदि जगह साम्यवादी सरकारी स्थापित हो गई।

रूस के उदय होने के बाद विश्व में  शीतयुद्ध प्रारंभ हो गया था।

स्वतंत्र विश्व का नेतृत्व अमेरिका के हाथों में

प्रथम महायुद्ध ने इंग्लैंड को शक्तिशाली राष्ट्र बना दिया था, परंतु द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका को शक्तिशाली राष्ट्र बना दिया। इस युद्ध ने स्पष्ट कर दिया था कि अब संसार में दो महान शक्तियां रह गई है सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका।

चीन में साम्यवादी  सरकार की स्थापना

द्वितीय महायुद्ध में चीन ने मित्र राष्ट्र को सहयोग दिया था।  चीन के राष्ट्रपति अमेरिका की शक्ति पर  आश्रित थे। रूस के सहयोग से चीन में साम्यवाद का जोर पढ़ रहा था और वहां ग्रह युद्ध प्रारंभ हो गया चीन की राष्ट्रपति को फारमोसा टापू में  शरण लेनी पड़ी। चीन में साम्यवादी सरकार की स्थापना हुई।

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना

द्वितीय विश्व  युद्ध का महत्वपूर्ण परिणाम संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना है। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को की गई और यह संघ आज तक सफल रहा है।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ही संयुक्त राष्ट्र संघ की सहायता से मुद्रा कोष और विश्व बैंक की स्थापना हुई।

शीत युद्ध का प्रारंभ

द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद  अमेरिका और रूस के बीच शीत युद्ध  शुरू हो गया। इसमें किसी भी प्रकार का युद्ध नहीं लड़ा गया यह एक विचारों का ही  युद्ध था।

निष्कर्ष

द्वितीय महायुद्ध का प्रभाव विश्व के सभी देशों पर पड़ा। उन देशों पर भी गहरा प्रभाव पड़ा जो इस युद्ध में तथास्तु रहे। ए बात शक्ति संतुलन इंग्लैंड के हाथों से निकलकर अमेरिका के हाथों में आ गया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान  अमेरिका ने जापान के ऊपर बम का प्रयोग किया और  द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद शीट युद्ध प्रारंभ हो गया था।

 

  

  

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