जर्मनी का एकीकरण कब ओर किसने किया, जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका

 जर्मनी का एकीकरण कब हुआ?

जर्मनी के कुछ राज्य अलग-अलग भागों में विभाजित है उनमें एकता और  समानता का अभाव था। वे धर्म जाति में  विभाजित थे।  जब  प्रशा,  बवेरिया,  सेक्सोनी  आदि राज्यों को आपस में मिलाकर जर्मनी साम्राज्य का रिटर्न किया गया इतिहास में इस घटना को  जर्मनी का एकीकरण  कहा जाता है।

जर्मनी साम्राज्य को  एकीकरण की आवश्यकता क्यों पड़ी?

जर्मनी 38 राज्यों में बटा था।  जर्मनी पर  ऑस्ट्रिया का प्रभाव था और  वही प्रशा अपने राजनीतिक और आर्थिक के   महत्व के कारण  प्रसिद्ध था।

जर्मनी का एकीकरण पांच भागों में विभाजित है

सांस्कृतिक एकीकरण

भौगोलिक एकीकरण

आर्थिक एकीकरण

सामाजिक एकीकरण

राजनीतिक एकीकरण

जर्मनी का सांस्कृतिक एकीकरण

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जर्मनी मध्य काल से ही 300 भागों में बटा हुआ था।  मध्यकाल में सामंती व्यवस्था थी।  उस समय ईसाई धर्म दो भागों में बैठ गया था प्रोटेस्टेंट  और कैथोलिक।

जर्मनी के सामने सबसे  बड़ी चुनौती सांस्कृतिक एकीकरण की ही थी।  यहां पर अलग-अलग भाषा बोलते थे।  जर्मनी  के  एकीकरण में  पुनर्जागरण ने  अपनी महत्वपूर्ण  निभाई।  पुनर्जागरण के दौरान  कई पांडुलिपियों की खोज हुई  जिनसे  जर्मनी के लोगों ने  अपनी प्राचीन सभ्यता को  पहचाना।

सांस्कृतिक एकीकरण  दार्शनिकों की भी  महत्वपूर्ण भूमिका थी।  इस समय  जर्मनी में हर्डर, फिकटे ओर हिगल ।

हरडर ने  जर्मनी के लोगों को बताया कि   हर एक देश की  अपनी एक  भाषा होती है, और अपनी एक संस्कृति होती है।   इसी के सहारे हम अपने  देश का  विकास कर सकते हैं।   हिगल ने लोगो को  राज्य के बारे में बताना शुरू कर दिया।   हिगल ने यह कहा कि राज्य  संवैधानिक होगा।

इस प्रकार   दार्शनिक ने  जर्मनी के एकीकरण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

भौगोलिक एकीकरण

मध्यकाल में ही  जर्मनी छोटे-छोटे भागों में बांटा था उनमें से सबसे शक्तिशाली प्रशा था।  1804 से 1815 तक  नेपोलियन ने जर्मनी के कई  राज्य जीत लिए थे। उसने 38 राज्यों का एक संघ बनाया जिसे  राइन संघ के नाम से जाना गया।  इस प्रकार जर्मनी की  भौगोलिक  क्षेत्र में एकत्रित होने लगे।  धीरे-धीरे उनके मन में फ्रांसीसी के खिलाफ  आवाज उठने लगी। वे अपने देश के कल्चर को लेकर  सोचने लगे।

आर्थिक एकीकरण

जर्मनी के विभिन्न राज्यों में  चुंगी कर  के अलग-अलग नियम थे।  जिन से वहां के व्यापारिक विचार में  बड़ी   अड़चन आती थी।  इस बाधा को  दूर करने के लिए जर्मन राज्यों ने  एक  चुंगी संघ की स्थापना की।  इस  चुंगी संघ का नाम सोलवरिन्न था।  यह एक प्रकार का व्यापारिक  संघ था।  जिसका प्रतिवर्ष  अधिवेशन होता था। अब सारे जर्मनी के लोगों को एक प्रकार का सीमा शुल्क  देना पड़ता था। इस प्रकार आर्थिक एकीकरण से जर्मनी के विकास को गति मिली।

सामाजिक एकीकरण

आर्थिक एकीकरण के कारण जर्मनी में मध्यम वर्ग का उदय हो गया था।  मध्यमवर्ग ने अपने समाज के बारे में सोचना शुरू कर दिया। उनकी पिछड़ेपन का कारण उनका आपसी विभाजन था। 1848 में  जर्मनी के लोगों ने  फ्रेंकफ्रेंट नामक  एक संघ बनाया  लेकिन आस्ट्रेलिया के  शासक  मेटरनिख ने  इस संघ को समाप्त कर दिया।

इस प्रकार जर्मनी के लोगों को लगा  जब तक उनका राजनीतिक एकीकरण नहीं होता तब तक पूरे जर्मनी का एकीकरण नहीं हो पाएगा।

फ्रांस की क्रांति का प्रभाव

जर्मनी के लोगों में 1830 ओर 1848  की फ्रांस की क्रांति का काफी प्रभाव पड़ा था।

1860 में  इटली का एकीकरण भी काफी हद तक पूरा हो गया था। 

राजनीतिक एकीकरण

प्रशा के शासक  विलियम   प्रथम  ने जब प्रशा के  नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण शुरू करने के लिए  सैनिक शक्ति बनानी शुरू की तो ने अपने ही सांसद से  सुनने को मिला   फिर  विलियम  प्रथम ने  ऑटो एडवर्ट  लियोपोल्ड बिस्मार्क को  जर्मनी का चांसलर बनाया 

बिस्मार्क ने रक्त और लौह की नीति अपनाकर जर्मनी का एकीकरण करना शुरू कर दिया।

बिस्मार्क का जन्म परिचय

बिस्मार्क का जन्म 1815 में एक कुलीन परिवार में हुआ था बिस्मार्क की शिक्षा बर्लिन से हुई थी। 1847 में वह  प्रशा  में   प्रतिनिधि सदस्य बना। जर्मन संघ में का प्रतिनिधित्व करता था।  1859 में  उसे रूस में सनी का राजदूत नियुक्त किया।  उसकी रूचि संसद और लोकतंत्र में नहीं थी  वह सैनिक  और राजनीतिक कार्य में  रुचि रखता था। वह प्रशा  सैनिक रूप से मजबूत कर पूरे यूरोप में प्रशा का वर्चस्व  कायम करना चाहता था  तथा आस्ट्रिया  जर्मन संघ से बाहर निकाल कर प्रशा के  नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण करना चाहता था। वह सभा और भाषण में विश्वास नहीं करता था।

प्रशा की  सैनिक शक्ति बढ़ाकर और अपनी कूटनीतिक  से जर्मनी का एकीकरण किया।

डेनमार्क से युद्ध 1864

सबसे पहले उसने अपनी शक्ति का प्रहार डेनमार्क में किया। जर्मनी और डेनमार्क के बीच दो प्रदेश थे। लेसविग ओर  हालस्टीन  दोनों प्रदेश डेनमार्क के कब्जे में थे  इन प्रदेश में आधे से ज्यादा जर्मनी लोग रहते थे। 1863   ने डेनमार्क के शासक ने  इन दोनों प्रदेशों को   डेनमार्क में  शामिल कर लिया। यह कार्य 1852  लंदन समझौते के विरुद्ध था  इसलिए जर्मनी संघ के राज्यों ने डेनमार्क का विरोध किया  उन्होंने  मांग की इन  क्षेत्रों को डेनमार्क  से मुक्त कराया जाए ।  बिस्मार्क ने सोचा कि  यह समय  डेनमार्क से युद्ध करने का सही है। वह इस युद्ध में   ऑस्ट्रिया को भी शामिल करना चाहता था क्योंकि अगर वह अकेला युद्ध करता तो  उसके ऊपर प्रतिक्रिया हो सकती थी। 1864 में  ऐसा  ऑस्ट्रिया और प्रशा ने मिलकर पर  हमला कर दिया। इस युद्ध में डेनमार्क की हार हुई और  उसे एक समझौता करना पड़ा। इस  समझौते को    गेस्टी न  का  समझौता कहां गया।   इस समझौते के अनुसार डेनमार्क से मिले दोनों प्रदेशों में प्रशा  और  ऑस्ट्रिया के बीच मतभेद हो गए ।

प्रशा  युद्ध के पक्ष में था लेकिन ऑस्ट्रिया अपनी आंतरिक स्थिति के कारण  युद्ध  नहीं करना चाहता था।

14 अगस्त 1865  इसवी  को दोनों के बीच  गेस्टीन  नामक स्थान में समझौता हुआ।

बिस्मार्क इस समझौते को  स्थाई नहीं मानता था।  इस समझौते की  कभी भी  अवहेलना की जा सकती थी।

1866 में प्रशा ओर  ऑस्ट्रिया  के बीच युद्ध हो गया। इस युद्ध में  आस्ट्रिया की हार हुई।   इस युद्ध की   समाप्ति प्राग  संधि के दौरान हुआ हुआ जिसकी कुछ निम्नलिखित   शर्त थी

ऑस्ट्रिया के नेतृत्व में जर्मनी संघ बना था उसे समाप्त कर दिया जाए।

डेनमार्क से जो प्रदेश जीते थे  उसे प्रशा  को वापस कर दिए जाए।

  दक्षिण जर्मनी साम्राज्य को  स्वतंत्र मान लिया जाए।

बेनिसिया प्रदेश  इटली को दे दिया जाए।

इस प्रकार  बिस्मार्क  जर्मनी के एकीकरण करने में सफल रहा।

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