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ICICI Bank Share Price Target History

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ICICI Bank Share Price Target 2022, 2023, 2024, 2025, 2030

नमस्कार दोस्तों आज इस लेख में शेयर मार्केट के महत्वपूर्ण  बैंकिंग शेयर ICICI Bank Share Price Target के बारे में चर्चा करने वाले हैं।

2022 में बहुत से लोग ICICI Bank Share में इन्वेस्ट करने की योजना बना रहे होंगे।  इन्वेस्टर को आईसीसी बैंक में इन्वेस्ट करने से पहले बैंक के सभी टारगेट और आने वाली टारगेट के बारे में तथा बैंक के शेयर प्राइस में किस प्रकार रिस्क है सभी बातों को ध्यान में रखकर आईसीसी बैंक शेयर में इन्वेस्ट करना  चाहिए।

ICICI Bank Share Overview

ICICI Bank भारत का सबसे बड़ा प्राइवेट बैंक है आईसीसी बैंक का पूरा नाम Industrial Credit and Investment Corporation of India है और इस बैंक की स्थापना 1955 में हुई है। 1 जनवरी 1999 को आईसीसी बैंक शेयर मार्केट में लिस्ट हुआ बैंक का शुरुआती शेयर प्राइस ₹4 था नवंबर 2021 में बैंक का शेयर प्राइस ₹756 है। बैंक का टोटल रेवेन्यू ₹161,192 crore है और आईसीसी बैंक की टोटल इनकम ₹20,220 crore है। आईसीसी बैंक की ऑफिशल वेबसाइट www.icicibank.com है। आईसीसी बैंक का टोटल मार्केट कैप 5,30,197Cr रुपए है।

ICICI Bank Share Price Target 2022, 2023, 2024, 2025, 2030 Table

Years Targets    Share Price Target Of ICICI Bank

2022 (Target-1)    Rs.800

2022 (Target-2)    Rs.950

2023 (Target-1)    Rs.1060

2023 (Target-2)    Rs.1125

2025 (Target-1)    Rs.1200

2025 (Target-2)    Rs.1360

2030 (Target-1)    Rs.1400

2030 (Target-2)    Rs.1900

ICICI Bank Share Price Target 2022 In Hindi

आईसीसी बैंक आर्थिक स्थिति से बहुत मजबूत है बैंक का बिजनेस मॉडल बहुत से सेक्टर में फैला हुआ है।

बैंक बैंकिंग के अलावा, इन्वेस्टमेंट, ट्रेडिंग, म्यूच्यूअल फंड, क्रेडिट कार्ड, इक्विटी रिस्क, वेल्थ मैनेजमेंट आदि ऑनलाइन सर्विस अपने कस्टमर को देता है।

बैंक में इन्वेस्ट करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है और बैंक 2021 में अपनी कस्टमर संख्या को बढ़ाने में भी सफल रहा है।

2022 में ICICI Bank Share Price Target ₹800 दूसरा टारगेट प्राइस ₹950 पर जाने की उम्मीद शेयर होल्डर कर सकते हैं।

ICICI Bank Share Price Target 2023 In Hindi

आईसीसी बैंक भारत का सबसे बड़ा प्राइवेट बैंक है सबसे अच्छी सर्विस देने में आईसीसी बैंक नंबर वन माना जाता है। आईसीसी बैंक ऑनलाइन सर्विस के माध्यम से अन्य बैंकों की अपेक्षा ज्यादा कस्टमर जोड़ने में हमेशा सफल रहता है।

बैंक लगातार अपनी इनकम को बनाने में भी सफल रहा है।

2023 में ICICI Bank Share Price Target ₹60 और दूसरा टारगेट प्राइस ₹1125 की उम्मीद की जा सकती है।

 ICICI Bank Share Price Target 2025 In Hindi

भारत में प्राइवेट बैंक में सबसे अच्छी टेक्नोलॉजी की बात करें तो आईसीसी बैंक इकलौता ऐसा बैंक है जिसके पास कस्टमर जोड़ने की सबसे अच्छी टेक्नोलॉजी है।

आईसीसी बैंक बैंकिंग के अलावा अन्य सर्विस भी प्रदान करता है जिसके कारण बैंक का बिजनेस मॉडल बहुत ज्यादा मजबूत है।

2025 में ICICI Bank Share Price Target 1200 रुपए और दूसरा टारगेट प्राइस सो ₹1360 पर जाने की उम्मीद कर सकते हैं।

ONGC Shar Price Target 2022,2023,2025,2030

Bajaj Finance Share Price Target 2022,2023,2025,2030

Yes Bank Share Price Target 2022,2023,2025,2030

ICICI Bank Share Price Target 2030 In Hindi

आईसीसी बैंक की ब्रांच पूरे भारत में फैली हुई है। बैंक अपने कस्टमर को अधिक से अधिक फाइनल सुविधाएं दे रहा है। अधिकतर लोगों का झुकाव अब आईसीसी बैंक की ओर जा रहा है। आईसीसी बैंक को भारत का नंबर वन प्राइवेट बैंक माना जाता है। 2021 के आंकड़ों की बात करें तो आईसीसी बैंक ने अपना बहुत अच्छा रिजल्ट पेश किया था। आने वाले समय में हमें बैंक के शेयर प्राइस में मजबूती देखने के लिए मिल सकती है।

2030 में ICICI Bank Share Price Target 1400 रुपए और दूसरा टारगेट प्राइस ₹1900 से ऊपर पर जाने की उम्मीद कर सकते हैं।

Adani Power Ltd Share Price Target 2022,2023,2025,2030

Tata Motors Share Price Target 2022,2023,2025,2030

BHEL Share Price Target 2022,2023,2025,2030

ICICI Bank Share भविष्य के लिए सही है?

अगर आपने आईसीसी बैंक में इन्वेस्ट किया है तो आपको इस बैंक का शेयर प्राइस भविष्य तक के लिए होल्ड करके रखना चाहिए क्योंकि शेयर मार्केट विशेषज्ञों का मानना है कि आई सी सी बैंक का शेयर प्राइस भविष्य में अपने शेरहोल्डर को यानी कि लॉन्ग टर्म में अच्छा रिटर्न दे सकता है। 2021 से बैंक की इनकम में लगातार वृद्धि हो रही है आईसीसी बैंक अन्य बैंकों की अपेक्षा सबसे बड़ा प्रॉफिटेबल बैंक माना जाता है।

ICICI Bank Share में Risk क्या है?

आईसीसी बैंक में छोटे समय के लिए इन्वेस्ट करने की योजना बनाई है तो इस शेयर प्राइस में शॉर्ट टर्म टाइम के लिए रिस्क देखा जा रहा है। क्योंकि कंपनी का शेयर प्राइस उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा है। बैंक के शेयर प्राइस में सबसे बड़ा रिस्क यह है कि बैंक ऑनलाइन सर्विस प्रदान करता है और कब भारत में ऑनलाइन सर्विस के या म्यूचुअल फंड के अलावा ट्रेडिंग में नियम और कानून बदल जाए और ऐसा होता है तो इसका सीधा प्रभाव बैंक की शेयर प्राइस पर पड़ेगा।

अंतिम शब्द

आज इस आर्टिकल में आपको ICICI Bank Share Price Target 2022, 2023, 2024, 2025, 2030  के बारे में जानकारी आईसीसी बैंक का तकनीकी विश्लेषण करके दी है।

वेवेल योजना क्या थी

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 वेवेल योजना क्या थी

इंग्लैंड के प्रधानमंत्री  लॉर्ड वेवल ने एक योजना प्रस्तावित की थी जिसे वेबर योजना के नाम से जाना जाता है। इस योजना को प्रस्तावित करने के लिए निम्नलिखित कारण थे

  • मई 1945 जर्मनी की पराजय से यूरोप में युद्ध म बंद हो गया था, परंतु दक्षिण पूर्व एशिया में अभी तक युद्ध चल रहा था, अभी तक जवान को हराने के लिए भारतीयों का सहयोग प्राप्त करना आवश्यक था।

  • अमेरिका तथा अन्य मित्र राष्ट्रों ने चर्चित की सरकार पर  भारतीय समस्या को हल करने के लिए दबाव डालना आरंभ कर दिया था।

  • सन 1944 के वर्षों में  भारत के अनेक भागों में भीषण अकाल पड़ा जिसमें असम के लोग मारे गए और लाखों लोग भुखमरी का शिकार हो गए। किस आर्थिक संकट से जनता में भीषण असंतोष फैला। सरकार के लिए यह आवश्यक ताकि इस असंतोष को दूर करें।

  • कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी से लोगों में दिन-प्रतिदिन नाराजगी बढ़ती जा रही थी अतः सरकार अधिक दिनों तक इन नेताओं को जेल में नहीं रख सकती थी।

इन सभी परिस्थितियों में लॉर्ड वेवल  21 मार्च 1945 को लंदन गए और 4 जून को लौटकर उन्होंने भारतीय नेताओं के समक्ष शक्ति योजना रखी-

 इस योजना में प्रमुख  बातें निम्नलिखित थी

  1. ब्रिटिश सरकार भारत के राष्ट्रीय प्रतिरोध को दूर करके उसे सुशासन के लक्ष्य की ओर अग्रसर करना चाहती है।

  2. देश को ध्यान में रखकर एक नई  जनप्रतिनिधि कार्यकारणी परिषद का निर्माण किया जाए जिसने गवर्नर जनरल की प्रधान  सेनापति को छोड़कर सभी सदस्य भारतीय होंगे।

  3. नई कार्यकारिणी परिषद में सब हिंदुओं मुसलमानों बराबर  अनुपात में होगी।

  4. विदेशी मामलों का विभाग का  गवर्नर जनरल से लेकर उसकी परिषद की एक भारतीय सदस्य को सौंप दिया जाएगा।

  5. सन 1935 के अधिनियम के अंतर्गत गवर्नर जनरल को जियो विशेषाधिकार प्राप्त थे उनका प्रयोग वह बिना किसी विशेष कार्य के लिए नहीं करेगा।

  6. भारत में ब्रिटिश हितो की रक्षा के लिए एक ब्रिटिश हाई कमिशन  की नियुक्ति की जाएगी और गवर्नर जनरल को केवल भारत सरकार का  प्रधान माना जाएगा।

  7. की समाप्ति के पश्चात भारतीय स्वयं ही अपने देश के लिए संविधान बनाने के लिए स्वतंत्र होंगे।

  8. भारत की विभिन्न राजनीतिक दलों को  शीघ्र ही शिमला में एक सम्मेलन आयोजित किया जाएगा।


सी. आर. फॉर्मूला क्या था?

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 सी. आर. फॉर्मूला क्या था?

श्री राजगोपालाचारी काफी दिनों से कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच  समझौता कराकर मुस्लिम संप्रदाय समस्या को हल करना चाहते थे,  इसी उद्देश्य से अप्रैल 1942 ईस्वी को  उन्होंने एक योजना तैयार की थी, जिसे कांग्रेस ने आसिफ कॉल कर दिया। इससे  नाराज होकर उन्होंने कांग्रेस की  कार्यसमिति से त्याग दे दिया। सन 1944 में जब गांधीजी  जेल से छूट कर बाहर आए तो उन्होंने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौते का आधार बनवाने के लिए एक नई योजना बनाई, जिसे इतिहास में  सी.आर. फार्मूला भी कहा जाता है।

इस योजना की प्रमुख बातें निम्नलिखित है:-

  • मुस्लिम लीग भारत की  स्वाधीनता की मांग का समर्थन करें और संक्रांति काल के लिए स्थाई आंशिक सरकार की स्थापना में  कांग्रेस का सहयोग करें।

  • युद्ध के पश्चात एक आयोग की नियुक्ति की जाए, जो उत्तर पश्चिम तथा पूरे भारत के उन जिलों की सीमा का निर्धारण करने  करेगी, जहां मुस्लिम बहुमत है। इसके उपरांत वयस्क मताधिकार प्रणाली के अनुसार उन क्षेत्रों  के निवासियों की मतगणना करके भारत से उनके संबंध विच्छेद के प्राप्त करने में किया जाए। यदि क्षेत्र भारत से पृथक होना चाहिए तो उन्हें पृथक कर दिया जाए। परंतु सीमावर्ती क्षेत्रों को  अपनी इच्छा अनुसार एक दूसरे राज्य में   रहने का अधिकार हो।

  • जनमत संग्रह से पूर्व  प्रत्येक दल को अपने पक्ष में प्रचार करने की पूर्ण स्वतंत्रता दी जाए।

  • विभाजन होने पर सुरक्षा व्यवस्था संचार के  संबंध में परस्पर  समझौता किया जाए।

  • जनसंख्या का  हस्तांतरण जनता की इच्छा के आधार पर हो।

  • उपयुक्त सभी  शर्त केवल उसी दशा में लागू होगी जबकि ब्रिटेन की सरकार भारतीयों को शासन का संपूर्ण उत्तरदायित्व देना स्वीकार कर ले।

इस योजना के आधार पर गांधीजी तथा जिन्ना के मध्य कालीन तक बात चली परंतु इसका कोई परिणाम नहीं निकला और इस  योजना का अंत हो गया।



साइमन कमीशन कब और क्यों भारत आया

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सन 1919 के अधिनियम जांच के लिए सरकार  ने 2 वर्ष पूर्व ही सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक आयोग स्थापित किया इस कमीशन में कुल 7 सदस्य थे और वे सभी अंग्रेज थे। 8 फरवरी 1928 मे  कमीशन मुंबई में आया और उसका व्यापक विरोध किया गया। इस दिन सारी देश में साइमन कमीशन गो बैक के नारे लगाए गए। जब कमीशन लाहौर पहुंचा तो इसके विरुद्ध लाल लाजपत राय के नेतृत्व में एक विशाल जुलूस निकाला गया। दुर्भाग्यवश इसी समय पुलिस अधिकारी  मिस्टर सांडर्स ने लालाजी की छाती पर लाठी मार दी जिसके कारण उनका कुछ दिनों में निधन हो गया। दिल्ली, लखनऊ  साइमन गो बैक के नारे लगे। लखनऊ में नेहरू और गोविंद बल्लभ पंत  लाठीचार्ज का शिकार हुए।

साइमन गो बैक का नारा  युसूफ महरौली ने  गढ़ा था।

प्रबल विरोध के बावजूद  साइमन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट  सरकार के समक्ष प्रस्तुत की 2 मई 1930 को प्रकाशित हुई। 

साइमन कमीशन की रिपोर्ट में मुख्य सिफारिशें निम्नलिखित थी:-

  • प्रांतों में प्रचलित द्वैध शासन प्रणाली का अंत और उसके स्थान पर स्वायत्त शासन  प्राणी को लागू कर दिया  जाएगा।

  • प्रांतों के विधान मंडलों का विस्तार किया जाए।

  •  संप्रदायिक प्रतिनिधित्व को पूर्ववत जारी किया जाए।

  • केंद्र ने पहले की तरह ही  अनुउत्तरदायित्व सरकार बनी रहे।

  • एक वृत्त भारत की स्थापना की जाए,  जिसमें ब्रिटिश प्रांतों तथा देशी रियासतों की प्रतिनिधि शामिल हो।

  • केंद्रीय व्यवस्थापिका सभा का दूबारा गठन किया जाए।

  • भारत में मताधिकार का विस्तार किया जाए तथा देश के कम से कम  10 से 15% जनसंख्या मताधिकार कर सकती है।

  • कमीशन ने के भारतीकरण की आवश्यकता को स्वीकार किया, परंतु कुछ समय तक अंग्रेज सैनिकों की भारत में उपस्थिति मान्यता  दी जाए।

  • कमीशन ने गवर्नर जनरल के  विशेष शक्तियों को पूर्वक  बहाल  रखा।

  • कमीशन ने सिफारिश की कि भारत सचिव को परामर्श देने के लिए भारत परिषद को कायम रखा जाए परंतु इसकी शक्ति  सीमित कर दी जाए।

  • कमीशन ने कुछ बड़े प्रांतों के  विभाजन का सुझाव दिया।

साइमन कमीशन की सारी बातों का भारत में  बहुत तेजी से विरोध हुआ क्योंकि  इस कमीशन में कोई भी सदस्य भारतीय नहीं थे।  1919 के अधिनियम में  हर 10 वर्ष बाद  जांच होनी थी, 1919 के अधिनियम का भी भारत में जोरों शोरों से विरोध किया गया था।



साइमन कमीशन भारत क्यों आया था?

साइमन कमीशन 1919 के अधिनियम की जांच करने के लिए हर 10 वर्षों बाद  एक कमीशन को भारत आना था और इस कमीशन की अध्यक्षता  साइमन ने की थी।

साइमन कमीशन का गठन कब हुआ था?

साइमन कमीशन का गठन 1927 में हुआ था और 1928 में साइमन कमीशन भारत पहुंचा था।

लाला लाजपत राय की मृत्यु कब हुई थी?

साइमन कमीशन के विरोध के दौरान लाहौर में लाठीचार्ज के  कारण  17 नवंबर 1928 को  लाला लाजपत राय की  मृत्यु हो गई थी।

सांडर्स कौन था?

सांडर्स एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी था  जिसने साइमन कमीशन के विरोध के समय लाला लाजपत राय के ऊपर लाठीचार्ज किया था जिसके कारण लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई थी।

भगत सिंह ने  सांडर्स की हत्या क्यों की?

सांडर्स ने साइमन कमीशन विरोध के दौरान लाठीचार्ज किया था जिसमें  लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई थी जिसका बदला लेने के लिए भगत सिंह ने सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी।

भगत सिंह को फांसी की सजा कब दी गई?

सांडर्स की हत्या के कारण भगत सिंह को 23 मार्च 1931 में  अंग्रेजों द्वारा फांसी दे दी गई थी, उनके दोनों दोस्त सुखदेव और  राज गुरु भी शामिल थे।

भारत में साइमन कमीशन  के दौरान  इंग्लैंड के प्रधानमंत्री कौन थे?

1928 में साइमन कमीशन भारत आया और उस समय इंग्लैंड के प्रधानमंत्री इटली थे।

Governent of India act,1919 1919 का भारत सरकार अधिनियम

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प्रस्तावना  इस अधिनियम की प्रस्तावना में वे तत्व शामिल किए गए  जिसके  अनुसार भारत में सुधार लाए जाने थे, जो लगभग वही थी जो 20 अगस्त उन्नीस सौ की घोषणा में कहे गए थे। इसके अनुसार  भारत को अंग्रेजी साम्राज्य का  अभिन्न अंग रहना था, भारत में उत्तरदायित्व सरकार की स्थापना होनी थी, जो कि केवल क्रमश: आना संभव था, जिसके लिए भारतीयों का प्रशासन के विभिन्न  भागों में सहचार्य बढ़ाना चाहिए। और धीरे-धीरेे स्वायत्त शासन आना संभव था, प्रांतों में  स्वायत्तता शासन के बढ़ाने के साथ यह आवश्यक है कि प्रांतों को भारत सरकार के नियंत्रण से जहां तक संभव अधिकाधिक मुक्त किया जाए।

प्रस्तावना का मूल उद्देश्य  यह था कि जो भी घोषणा मोंटेग्यू ने की थी उसे अब एक वैधानिक रूप  दे दिया गया था अंग्रेजी सरकार का भारत पर नियंत्रण स्पष्ट कर दिया गया और यह भी स्पष्ट हो गया कि भविष्य में किस दशा में कैसे जाना है।



1919 के अधिनियम की मुख्य  धाराएं

1 ग्रह सरकार में परिवर्तन

1793 से भारत में राजस्व सचिव को भारतीय राजस्व से वेतन मिलता था वह अब अंग्रेजी राजस्व से मिलने लगा था,  उसके कुछ कार्य लेकर  एक नए पदाधिकारी भारतीय उच्च आयुक्त जिसको भारतीय राजस्व से  वेतन मिलता था उसको दे दिया गया । उच्चायुक्त स परिषद गवर्नर जनरल का  कार्यकर्ता बन गया। प्रांतों में हस्तांतरित विषयों पर भारत राज्य सचिव का नियंत्रण कम हो गया यद्यपि केंद्र पर उसका नियंत्रण बना रहा।

इस अधिनियम में भारतीय सचिव की भूमिका में जो परिवर्तन हुए उनका परिणाम से जो कांग्रेस ने 1916 के प्रस्ताव में किए थे। कांग्रेस का कहना था कि भारत शासन दिल्ली और शिमला से होना चाहिए ना की  वाइटहॉल से।

भारत सरकार में परिवर्तन कार्यकारिणी में 

यद्यपि केंद्र में उत्तरदायित्व सरकार लाने का कोई प्रयास नहीं किया गया परंतु भारतीयों को अधिक प्रभावशाली भूमिका दी गई।  गवर्नर जनरल  की कार्यकारणी में 8 सदस्यों में से तीन भारतीयों को नियुक्त किया गया और उन्हें विविध, शिक्षा, श्रम तथा स्वास्थ्य एवं उद्योग इत्यादि सौंप दिए गए।

इस समय केंद्र का सभी विषयों पर अधिकार था और वह सभी विषयों में आज्ञा दे सकता था तथा कानून बना सकता था। चेन्नई सुधारों के अनुसार विषयों को और प्रांतों में बांट दिया गया। केंद्रीय सूची में सम्मिलित विषय पर सपरिषद गवर्नर जनरल  का अधिकारी था। इसमें वे विषय सम्मिलित थे जो  राष्ट्रीय महत्व के थे एक से अधिक प्रांत से संबंध रखते थे, जैसे विदेशी मामले, रक्षा, राजनैतिक संबंध, डाक, सार्वजनिक, संचार व्यवस्था, दीवानी फौजदारी मामले सभी केंद्रीय सूची में शामिल थे। परंतु जो प्रांतीय विषय के महत्व थे,, स्वास्थ्य, स्थानीय शासन व्यवस्था, चिकित्सा, प्रशासन, भूमिका, जलसंधारण, अकाल सहायता शांति, कृषि इत्यादि प्रांतीय सूची में शामिल थे जो विषय स्पष्ट और हस्तांतरित नहीं की गई वह सभी केंद्रीय माने गए।

आलोचना कार्यकारिणी में परिवर्तन का  कोई विशेष महत्व नहीं था यद्यपि 8 में से 3 सदस्य भारतीय तो थे। परंतु एक भी महत्वपूर्ण विभाग उनके अधीन नहीं था यह सदस्य विधान मंडल के प्रति भी उत्तरदाई क्यों नहीं थे। जिस परिस्थिति में हुई थी वह केवल गवर्नर की हां में हां मिलाने वाली थी।

विषयों का विभाजन किस प्रकार से नहीं हुआ था  इसमें विचार से काम नहीं लिया गया था।

विधान संबंधी परिवर्तन

एक सदन विधान परिषद के स्थान पर इस एक्ट के अनुसार केंद्र में द्विसदनीय व्यवस्था  स्थापित हो गई। एक सदन राज्य परिषद और दूसरा  सदन केंद्रीय विधानसभा था।

राज्य परिषद में जो ऊपरी सदन था  60 सदस्य थे जिनमें से 26 गवर्नर जनरल द्वारा मनोनीत होने वाले थे और 34 निर्वाचित होने वाली थे। इस प्रकार यहां निर्वाचित बहुत संख्या की स्थापना कर दी गई। 26  मनोनीत में से 19 पदाधिकारी तथा सात अशासकीय होने थे। 34 निर्वाचित में से 20  साधारण चुनाव क्षेत्रों में  चुने जाने थे 10 मुसलमानों और  तीन यूरोपी द्वारा एक सिखों द्वारा। इस राज्य परिषद का प्रतिवर्ष आंशिक रूप से नवीकरण होना था यद्यपि यह सदस्य 5 वर्ष के लिए बने थे। इनका प्रधान वायसराय द्वारा नियुक्त होता था। सदस्य को माननीय की उपाधि दी जाती थी। स्त्रियों की सदस्यता को उपयुक्त नहीं समझा गया।  गवर्नर जनरल इस सदन को बुलाकर स्थगित अथवा भंग कर सकता था।

मताधिकार बहुत  सीमित था, केवल वही लोग जिनकी आय ₹10000 वार्षिक की अध्यक्षों न्यूनतम ₹750 वार्षिक भूमिका के रूप में देते थे उन्हें मताधिकार प्राप्त था। दूसरे प्रत्याशी को किसी विधानमंडल का अनुभव होना चाहिए अथवा किसी विश्वविद्यालय की सीनेट का सदस्य होना चाहिए था। इसके अतिरिक्त व उपअधिकारी भी होना चाहिए था।

केंद्रीय विधानमंडल की शक्तियां

द्विसदनीय केंद्रीय विधान मंडल को पर्याप्त शक्तियां दी गई। वहां  समस्त भारत के लिए कानून बना सकता था। भारतीय  सरकारी अधिकारियों के लिए भी चाहे वे भारत में हो अथवा विदेश में सभी के लिए विद्यमान कानून को बदल सकता था अथवा रद्द कर सकता था, सदस्यों को प्रस्ताव अथवा उसे स्थगन का प्रस्ताव रखने की अनुमति थी तब की मैं पर तुरंत विचार किया जा सके। उन्हें प्रश्न पूछने का पूरा अधिकार था।

परंतु विधानमंडल में कुछ  नियंत्रण थे, विधि एक रखने से पूर्व गवर्नर जनरल की अनुमति प्राप्त करने अवश्य थी।

प्रांतीय सरकार में दोहरी शासन व्यवस्था

1919 के एक्ट का सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन  प्रांतीय शासन में आया,    प्रांतीय शासन में दोहरी शासन व्यवस्था लागू कर दी गई। प्रांतों को दो भागों में बांट दिया गया आरक्षित व हस्तांतरित विषय। आरक्षित विषयों का प्रशासन गवर्नर अपने पार्षदों की सहायता से करता था जो मनोनीत थे।

आरक्षित विषय  वे थे वित भूमि , अकाल संहिता, न्याय पुलिस, पेंशन, कल्याण , छापेमारी,  स्थानीय सुशासन, सार्वजनिक स्वास्थ्य, चिकित्सा सहायता , पशु चिकित्सा आदि।

विधान संबंधी परिवर्तन

प्रांतीय विधान मंडलों में भी परिवर्तन हुए। प्रांतीय परिषदों को और विधान परिषदों की संज्ञा दी गई उनका अधिकार क्षेत्र बढ़ा दिया गया क्योंकि सभी प्रांतों में भिन्न-भिन्न था, इन प्रांतीय परिषदों में कम से कम 70% सदस्य निर्वाचित होने थे।

1919 के अधिनियम की विशेषताएं

प्रथम विश्व युद्ध से भारत में राष्ट्रीय भावना की विकास में  बहुत सहायता मिली। मित्र नेताओं ने यह घोषणा की। की वे जर्मन नेताओं से इसलिए युद्ध कर रहे हैं ताकि जनतंत्र की रक्षा हो सके और प्रत्येक छोटी बड़ी जातियों को अपनी सरकार बनाने और चलाने का अधिकार मिल सके। भारतीय   राष्ट्रीय नेता ने इन घोषणा को अंकित  मूल्य में  अंकित कर लिया और कहा यह आत्म निर्णय का अधिकार भारत को भी मिलना चाहिए।

इसलिए भारतीय नेताओं को शांत करने के लिए  भारत सचिव  लॉर्ड मांटेग्यू ने 20 अगस्त 1917 को कॉमन सभा में यह घोषणा की कि भारत में संवैधानिक  सुधारों का उद्देश्य सुशासन  प्रणाली का सुधार विकास करने विकास करने की आसान से  धीरे-धीरे  उत्तरदाई सरकार की प्राप्ति करना है।

  • स्थानी निगमों नगर पालिका जिला बोर्ड इत्यादि में पूर्ण लोकप्रिय नियंत्रण।

  •   प्रांतीय शासन में आंशिक उत्तरदायित्व सरकार  की स्थापना।

  •  केंद्र में विधान परिषद में  विधान परिषदों का विस्तार  तथा उसमें अधिक प्रतिनिधित्व।

  •  प्रांतों में लोकप्रिय नियंत्रित विभागों पर भारत सचिव का नियंत्रण कम से कम करना।

1919 की भारत सरकार एक्ट में इन सिफारिशों को वैधानिक रूप दे दिया गया।

फासीवाद क्या है फासीवाद के उदय क्या कारण थे Causes of rise of fascism

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विश्व युद्ध के बाद इटली में फासीवाद की विचारधारा का उदय हुआ,  इस विचारधारा की स्थापना मुसोलिन ने की थी।

प्रथम विश्व युद्ध के बाद पेरिस की संधि में मित्र राष्ट्रों ने  इटली के साथ अलगाववाद की नीति अपनाई, इससे पहले मित्र राष्ट्रों ने इटली को अपनी ओर मिलाने के लिए बहुत सारे वादे किए थे लेकिन पेरिस की संधि में मित्र राष्ट्र ने इटली के साथ अलगाव का व्यवहार किया।

फासीवादी दल के उदय के कारण

असंतोष और निराशा स्थिति में फासीवाद का जन्म हुआ इसके लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायित्व थे।

  • वर्साय की संधि से निराशा

शांति सम्मेलन में इटली ने स्वयं को असंतुष्ट राज्यों की श्रेणी में पाया। अपनी त्रिगुट संधि के बावजूद भी इटली प्रथम युद्ध में मित्र राष्ट्र की ओर इसलिए शामिल हुआ था कि 1915 में लंदन में गुप्त समिति में मित्र राष्ट्र ने  इटली को लालच दिया था कि जीतने के बाद उसे  डा लमेशिया का एक बड़ा भाग दिला देंगे, पेरिस की संधि पर लंदन की संधि कूटनीतिक शव में परिवर्तित हो गई। 1919 के अंतिम समझौते में उसके अंतरराष्ट्रीय सम्मान को गहरा धक्का लगा, वर्साय की संधि ने उसकी आशाओं पर पानी फेर दिया। इटली को केवल 16 लाख 72 हजार जनसंख्या वाली 8  हजार 900 वर्ग मील भूमि ही प्राप्त हुई। इसके लिए  इटली की जनता ने अपने सरकार को बताया इस तरह संसदीय शासन के स्थान पर शासन का मार्ग अपने आप  परास्त हो गया था।

  • जनता का असंतोष

पेरिस की शांति सम्मेलन से इटली की जनता को अपनी आकांक्षाओं के अनुसार लाभ प्राप्त नहीं हुआ, जनता में बहुत असंतोष था, 1919 में डेंजों नामक एक इटालियन  कवि ने बलपूर्वक नगर पर अधिकार कर लिया तथा वह नगर का स्वतंत्र शासक बन गया इटली की सरकार ने  डेनजीओ को दबाने के लिए कोई साहस नहीं किया, डेंजियो की वीरता से इटली के निवासी  बहुत प्रभावित हुए। इस परिस्थिति का लाभ उठाकर फासिस्ट दल ने यह घोषणा कर दी कि यह सरकार की अयोग्यता के कारण ही हम को उस नगर को छोड़ना पड़ा इससे युद्ध में भाग लेने वाले सैनिक भी फासिस्ट दल की ओर हो गए, इससे फासीवादी दल की शक्ति बहुत बढ़ गई तंत्र सरकार बदनाम हो गई। जनता तथा देशभक्त नेता जनतंत्र वादी नेताओं को घृणा से  परोपजिवी कहने लगे।

  • आर्थिक कठिनाइयों तथा असंतोष

महा युद्ध के कारण  इटली को बहुत अधिक नुकसान हुआ था। उद्योग धंधे और वाणिज्य व्यापार रचित हो गई थी बेरोजगारी बढ़ गई थी कृषि की प्रगति रुक गई थी, सरकार कर्ज बोझ में दबी हुई थी। इटली की मुद्रा का मूल्य 70% काम हो गया। वस्तु का मूल्य का  आसमान छूने लगा। जनसाधारण का जीवन निर्वाह करना कठिन हो गया। इस आर्थिक पतन की अवस्था ने  इटली को पहले से  कमजोर  राजनैतिक व्यवस्था को अंतिम धक्का दिया।  असंतुष्ट जनता का  प्रजातंत्र की शासन व्यवस्था से विश्वास हट गया। जगह-जगह  विद्रोह होने लगे, हड़ताल होने लगी।  इटली ने इन कठिनाइयों को इसलिए मोल  लिया था क्योंकि उसे लग रहा था कि विजय होने के बाद उसे बहुत ज्यादा लाभ मिलेगा पर उसे कुछ भी नहीं प्राप्त हुआ। इटली के  राष्ट्रीय उत्साह को  गहरा धक्का लगा था।

मुसोलिनी ने इटली की जनता में एक  नई भावना जागृत की।

  • राष्ट्रीयता पर आघात

19वीं सदी में  यूरोपीय देश आर्थिक हितों की पूर्ति तथा गौरव में वृद्धि करने के लिए साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे। इटली ने भी ट्यूनीशिया पर अधिकार करना चाहता था, किंतु 1881 में जर्मनी के प्रोत्साहन पर ने उस पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात इटली ने अबीसीनिया पर  आक्रमण कर दिया किंतु अजेबा के युद्ध में  इटली को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा, इस पराजय से इटली के  जनतंत्र सरकार के स्थान पर एक ऐसी शक्तिशाली सरकार की स्थापना चाहते थे जो इटली वासियों की राष्ट्रीयआक्षाओं की पूर्ति कर सके तथा अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में इटली की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित कर सके। फासीवादी दल ने इटली वासियों की इस अकाउंट की पूर्ति करने की घोषणा कर दी और फासीवाद दल को जनता का समर्थन भी मिल गया।

  • साम्यवाद का जोर

असंतोष और निराशा के इस वातावरण में इटली में साम्यवाद जोर पकड़ने लगा था, हड़ताले तथा तोड़फोड़ आरंभ हो गई, रूस की साम्यवादी क्रांति द्वारा किसान मजदूर शासन स्थापित करने की  तैयारी करने लगे। इटालियन मार्क्सवाद अथवा राष्ट्रीयता को महत्व देता था, अंतर्राष्ट्रीय तक हो उसके लिए कोई महत्व नहीं था।  उग्र राष्ट्रवादी की भावना के भाव से  फासीवाद की विकास को बहुत  प्रोत्साहन मिला।

  • वाममार्गी  दलों का उदय

इटली में वाममार्गी  दलों के उदय में फासीवाद के मार्ग को साफ कर दिया। इटली में अनेक राजनीतिक गए थे  अनुपातिक निर्वाचन प्रणाली के कारण  प्रायः  दल के राजनेता  लोकसभा पहुंच जाते थे। परंतु किसी भी दल में इतना बहुमत नहीं था कि वह स्वतंत्र रूप से अपना मंत्रिमंडल बना सके। इससे संयुक्त मंत्रीमंडलों का निर्माण किया जाता था, सदस्य देश की समस्याएं के संबंध में  विचार ना करके  मंत्रिमंडल को जोड़कर सत्ता  अपने हाथों में ग्रहण करने का प्रयास किया जाता था। 1919 के निर्वाचन में बहुमत उदारवादियों का था और दूसरा दल सोशल डेमोक्रेट्स था। परंतु यह पारस्परिक विरोध के कारण आपस में मिलकर उग्रवादियों का विरोध ना कर सके,इसका लाभ फासीवादी दल ने उठाया।

  • भविष्यवाणी आंदोलन

इस आंदोलन का नेता मेरीनेटी था।  वह भूतकाल की समस्त मान्यताओं का विरोधी था, युद्ध को एक आवश्यक कार्य मानता था और कहता था कि विश्व की सफाई के लिए युद्ध अनिवार्य है। इसने प्रजातंत्र उदारता और शांति वक्त का विरोध किया उसके विचारों से  फासीवादी दल को बहुत प्रोत्साहन मिला।

  • डार्विनवाद परंपरागत और हिगलवाद का प्रचार

डार्विन के अनुसार जो जीवन के संघर्ष  प्रतिस्पर्धा में नहीं ठहर सकता है नष्ट हो जाते हैं, परंपरा वाद के सहारे  फासीवाद ने राष्ट्रवाद का निर्माण किया। हिग्लवाद के  प्रचार ने इटली फासीवाद को बहुत प्रोत्साहन दिया।

  • सभी वर्गों से सशक्त शासन की मांग

इटली की भूमि पति शक्तिशाली शासन चाहते थे जिससे कि निजी संपत्ति की सुरक्षा हो सके। विश्वविद्यालय के प्राध्यापक तथा तिवारी तत्कालीन पूर्ण व्यवस्था से घबरा उठे, और देश में शांति और व्यवस्था की स्थापना चाहते थे और इसीलिए वह भी शक्तिशाली शासन के इच्छुक थे कि इटली अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रभावपूर्ण स्थान प्राप्त कर सके। अतः इटली की पूंजी पत्ती तथा उद्योगपति शक्तिशाली शासन इसलिए चाहते थे कि मजदूरों पर नियंत्रण स्थापित हो सके और वाणिज्य व्यापार तथा उद्योग की उन्नति हो सके। किसान भी दूरव्यवस्था का अंत चाहते थे जिससे वे शांतिपूर्ण खेतों में काम कर सकेंगे। हटा शक्तिशाली शासन की मांग इसलिए के चारों ओर से हो रही थी। ऐसी परिस्थितियों में इटली के राजनैतिक  माहौल का फायदा  फासीवादी दल ने उठाया।

  • सरकार की निष्क्रियता और आक्रमणकारी नीति

एक तरफ इटली में इस तरह अराजकता फैली हुई थी दूसरी तरफ सरकार हाथ पर हाथ रखे चुपचाप बैठी थी। उसके द्वारा अराजकता और असंतोष की स्थिति समाप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया जिसके परिणाम समिति की दशा बिगड़ती गई।

इन परिस्थितियों में देश में एक  ऐसे दल का जन्म हुआ जिसने एसटी के शासन का स्वरूप बदल दिया और यह दल फासीवादी दल कहलाया व्हाट इस दल के सदस्य फेसियो कहलाए। आरंभ में हो संगठन  अधिक प्रभावशाली नहीं था किंतु धीरे-धीरे इस आंदोलन का रूप बदलता। इस दल को  मुसोलीन के रूप में एक युग नेता मिला। इस प्रकार फासीवादी दल का विकास हुआ


मुसोलिनी की विदेश नीति

सुविधा की दृष्टि से मुसोलिनी की विदेश नीति का विवेचन निम्नलिखित  शीर्षक पर किया जा सकता है


  • फासीवाद विदेश नीति का मूल तत्व

मुसोलिनी कहां करता था कि  फासिज्म वह दर्शन है जो राज्य की सत्ता की सर्वोच्चता में विश्वास करता है और शक्ति अनुशासन तथा एकता पर बल देता है। इसलिए यह स्वाभाविक कि मूसलीम के नेतृत्व में फासीवाद इटली ने विदेश नीति  अपनाई, प्रारंभ में मुसोलिनी ने यह घोषणा की थी कि वह विदेशी मामलों में फासीवाद का प्रयोग नहीं करेगा अथवा दूसरे शब्दों मे  फासीवाद को वह  विदेश राजनैतिक से  पृथक करना चाहता था। परंतु उसने अपनी इस विचार को शीघ्र ही बदल दिया और अपनी सभी कूटनीतिक चालू में फासीवाद को  प्रविष्ट करा दिया।

मुसोलिनी की विदेश नीति  का सर्वोपरि उद्देश्य था राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और गौरव की पुनः प्राप्ति। वह चाहता था कि अंतरराष्ट्रीय जगत में इटली एक सम्मानित स्थान प्राप्त करें, भूमध्य सागर में वह अपनी पूर्ण प्रभुसत्ता स्थापित करके अफ्रीका में विशाल औपनिवेशिक साम्राज्य का निर्माण करना चाहता था तथा वर्साय संधि का संशोधन करें। इन उद्देश्यों की पूर्ति तभी हो सकती थी जब सबसे पहले  इटली सैन्य शक्ति को शक्तिशाली बनाएं। पता मुसोलिनी ने सैनिक शक्ति के विकास को अपने कार्यक्रम का प्रथम अंग बनाया।  उपनिवेश की विजय और साम्राज्य विस्तार उसके कार्यक्रम का दूसरा प्रमुख अंग था, उसका विश्वास था कि वे आंखों में इटली की प्रतिष्ठा तब भी बढ़ सकती है जब इटली यहां सिद्ध कर दे कि उसने अपनी रक्षा करने की ही नहीं वरन दूसरों पर विजय प्राप्त करने की भी क्षमता है। सैनिक प्रतिष्ठा और समराज्य विस्तार द्वारा ही इटली को  उसका विगत गौरव पुनः प्राप्त हो सकता है।


मुसोलिनी का एक प्रमुख उद्देश्य भूमध्य सागर में प्रभु सत्ता स्थापित करना  तथा रोमन झील में परिवर्तन करना भी था। इटली को इस प्रभुत्व की आकांक्षा इसलिए थी कि उसके वाणिज्य का 80% भूमध्य सागर पर होता था और भूमध्य सागर के किनारे बसे हुए किसी भी देश की अपेक्षा उसका तटवर्ती प्रदेश अधिक था। वर्साय की संधि और  राष्ट्र संघ के अंग दोनों ही उसके मार्ग की रुकावटें थी उसका एक अन्य उद्देश्य इन्हें ठिकाने लगाना था।  इटली ने इसलिए इनका पहला उपहास किया, फिर उन्हें चुनौती दी और  गंदे तरीके से उन्हें ठोकर मार दी। भूमध्य सागर का मामला इटली के लिए कितना महत्वपूर्ण था और इस संबंध में स्त्री की क्या नीति थी जिससे स्पष्ट करते हुए कैटरीन दफ ने लिखा है कुछ ऐसी थी की भूमध्य सागर उसका साम्राज्य होने के बजाय उसके लिए एक जेल के समान था, माल्टा ट्यूनीशिया तथा साइप्रस उस जेल को  सीखते थे जबकि  जीरबर्ट्र ओर  स्वेज नहर इसके दरवाजों की रक्षा करती थी।  इटली संभवत लीबिया को सूडान , इथोपिया को जोड़कर हिंदी महासागर की ओर स्वानसी थी उत्तर अफ्रीका के रास्ते अटलांटिक की ओर आगे बढ़ता गया।

फासीवाद  मुसोलिनी की विदेश नीति की सफलता का मार्ग  तभी प्राप्त हो सकता था जब वह विरोधियों से शाम दंड भेद किसी भी उपाय से निपट सकती है। मुसोलिनी ने देखा चीन और सांचौर की भीषण  गंदी है उसने उसके संबंध में एक दूसरे के विरुद्ध करने दोनों कोई जर्मनी के खिलाफ उकसाने और  रोज के विरुद्ध कर देने की  चाल  खेली।  पश्चिम को शिथिल बना देने के लिए वह विरोधी समझौते जर्मनी के साथ शामिल हो गया फ्रांस और ब्रिटेन दोनों को चला कि सीमा देने के लिए उसने साम्यवाद से रक्षा करने के बहाने वहां हस्तक्षेप किया  और स्वयं को सैनिक का कूटनीतिक रूप से सुदूर स्थिति में किया।  जर्मनी की तरह 1940 में इटली ने फ्रांस पर हमला किया ताकि  धुरी राष्ट्र में जर्मनी जापान विजय होने के बाद ज्यादा लाभ प्राप्त करें।

मुसोलिनी  की विदेश नीति अथवा अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में कार्य

मुसोलिनी ने अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में इटली की स्थिति को  अच्छा किया। अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में इटली की दुर्लभता के दूर होने से उसका सम्मान बड़ा। मुसोलिनी ने इटली को सैनिक और आर्थिक दृष्टि से इतना मजबूत बना दिया और विदेश नीति के क्षेत्र में इतना  स्वेच्छाचारी  किया था कि पश्चिम की लोकतंत्र शक्तियों को भय पैदा होने लग गया। अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में मुसोलिनी ने महत्वपूर्ण कार्य किए थे।


  • रोड्स ओर डोडिकानिज पर अधिकार

यह दोनों द्वीप पहले इटली के अधिकार में थे पर 1920 में सेवर की संधि द्वारा यह द्वीप यूनान को दे दिए गए। इटली के देश भक्तों को यह मंजूर नहीं हुआ लड़की के कमाल पाशा ने जब यूनान को हराकर सेवर की संधि रद्द कर दी तो अवसर से ही लाभ उठाकर  मुसोलिनी रोड्स ओर डोडिकानिज पर अधिकार कर लिया। लुसाने की संधि द्वारा इटली को यदि पुनः प्राप्त हो गए इटली ने इन द्वीपों पर किलेबंदी करके नौसैनिक अड्डे स्थापित कर दिया।


  • यूनान और अल्बानिया के संघर्ष में हस्तक्षेप

अंतरराष्ट्रीय स्तर में इटली को खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित करने का दूसरा मौका  मुसोलिनी को  अल्बानिया और यूनान  के बीच चल रहे सीमा विवाद  के सिलसिले में मिला।  अल्बानिया और यूनान के बीच सीमा निर्धारित करने के लिए  अंतरराष्ट्रीय  आयोग नियुक्त किया गया था इसमें कुछ इटेलियन सदस्य भी थे ।  यह आयोग 1923 में यूनान गया। वहां की कुछ विरोधियों ने यूनानी द्वारा  इटली सदस्यों की हत्या कर दी, मुसोलिनी ने यूनान के हर्जाने के तौर पर एक लंबी रकम मांगी  और साथ ही भवरसा करके यूनान में कर्फ्यू नामक एक टापू पर अधिकार कर लिया अंत नहीं नाम को हर्जाना देना पड़ा और क्षमा मांगनी पड़ी।


  • युगोस्लाविया से संधि और फ्युमा का विभाजन

उत्तर एड्रियाटिक सागर में स्थित प्यूमा बंदर पर इटली की नजर थी। यह  प्रश्न इटली और युगोस्लाविया के बीच की विवाद का कारण बन गया था।  1920 में मित्र राष्ट्र ने अपने दबाव से देशों में समझौता कर  प्यूमा को एक स्वतंत्र  बंदरगाह घोषित कर दिया यह हालत संतोषजनक हुआ। मुसोलिनी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद  युगोस्लाविया के समक्ष एक सुझाव रखा और दोनों देश के बीच 1924 में एक संधि की गई। इसके अनुसार प्यूमा का एक खास नगर इटली को मिल गया बाकी के क्षेत्र युगोस्लाविया को।


  • अल्बानिया पर अधिकार

प्यूमा के बाद अल्बानिया की  बारी आई जो एड्रियाटिक सागर से दूसरे तट पर स्थित था। अल्बानिया एक गरीब राज्य था, यहां  शांति और व्यवस्था कायम नहीं कर सकता था। अत: उसने मुसोलिनी से आर्थिक सहायता मांगी। ऋण देकर मुसोलिनी ने उसे अपने प्रभाव में ले लिया  इस प्रकार एड्रियाटिक सागर को पूरी तरह  इटली के अधिकार में आ गया।

अबिसिनिया पर  अधिकार

फ्रांस और इटली के संबंधों में सुधार अधिक समय तक कायम नहीं रहा इथोपिया पर इटली की आक्रमण के कारण उनके संबंधों में  करवाहट पैदा हो गई, क्योंकि रात सनकी परिषद ने जब इटली को उचित किया तो उसका फ्रांस में विरोध नहीं किया।

अबीसीनिया  1935 में मुसोलिनी ने आक्रमण कर दिया जिसके मुख्य कारण

1 इटली साम्राज्य निर्माण की दौड़ में देर से शामिल हुआ  1935 में अफ्रीका में  मिस्र लाइबेरिया और दक्षिण अफ्रीका को जोड़कर संपूर्ण  यूरोपीय शक्ति के अंतर्गत आता था इसमें एक मात्र एक ऐसा देश था जिस पर इटली  अधिकार करने की आशा कर सकता था अबिसिनिया।
2 इटली की बढ़ती हुई जनसंख्या को खिलाने और बताने के लिए  नई औपनिवेशिक देशों की आवश्यकता थी। 
अबिसिनिया की आबादी लगभग 60 लाख थी उसका क्षेत्रफल 3  लाख  50000 वर्ग मील था जिससे इटली की अतिरिक्त जनसंख्या की समस्या का समाधान हो सकता था।
अबिसिनिया उसे अपने  कारखानों में विकास के लिए प्रचुर मात्रा में खनिज पदार्थ इमारती लकड़ी और उन रुई आदि कच्चा माल मिल सकता था।
3 1896 में अबिसिनिया ने  इटली को  अडोबा के युद्ध में  बुरी तरह पराजित किया था और इस  पराजय का बदला लेना चाहता था  यह भी एक कारण था कि इटली ने अबिसिनिया  पर आक्रमण किया।
4 उस समय तक जर्मन में नाजीवाद अपनी चरम शिखर पर पहुंच गया था, और  मित्र राष्ट्र ना जी बात से भयभीत हो रही थी।  मुसोलिनी को  मित्र राष्ट्र अपने  पक्ष में करने के लिए आते थे। मुसोलिनी अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों को अपने पक्ष में समझ कर उसका लाभ उठाना चाहता था और इसलिए उसने अबिसिनिया पर आक्रमण कर दिया ।
इस समय राष्ट्र  एमएमर्साय की संधि का उल्लंघन कर दिया था इसके अतिरिक्त जवान ने मंसूरिया पर आक्रमण कर दिया था और मुसोलिनी राष्ट्र संघ की असफलता को समझ गया था इसलिए उसने परिस्थितियों को अपने को समझकर 
अबिसिनिया पर आक्रमण कर दिया।
अबिसिनिया पर आक्रमण का एक महत्वपूर्ण कारण 1929 की इटली की आर्थिक मंदी हुई थी आर्थिक मंदी के फलस्वरूप यूपी की जनता का ध्यान इस कठिनाई पूर्ण समस्या से हटाने के लिए  मुसोलिनी ने अबिसिनिया  पर आक्रमण किया।

कोठारी शिक्षा आयोग के सुझाव और उद्देश्य क्या थे

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जुलाई 1964 में एक आयोग डॉ डीएस कोठारी की अध्यक्षता में नियुक्त किया गया जैसी सरकार को शिक्षा के सभी पक्षों तथा  प्रकरणों के विषय में  राष्ट्रीय नमूने की रूपरेखा, साधारण सिद्धांत तथा नीतियों की रूपरेखा बनाने का आदेश था।  इंग्लैंड, अमेरिका ,रूस इत्यादि से प्रमुख शिक्षा शास्त्री तथा वैज्ञानिक इससे संबंध किए गए।  यूनेस्को सचिवालय ने  जे, एफ  मेकडूगल  की सेवाएं भी उपलब्ध कराई। जिन्होंने एक सहकार  सचिव के रूप में आयोग में कार्य किया।

आयोग ने यह स्वीकार किया कि शिक्षा तथा अनुसंधान दोनों ही एक देश की समस्त आर्थिक सांस्कृतिक तथा विकास और प्रगति की निर्णायक है। इसने वर्तमान पद्धति की कठोरता की आलोचना की और शिक्षा नीति में उस लचीलापन की आवश्यकता की  आवश्यकता पर बल दिया  जो बदलती हुई  परिस्थितियों के अनुकूल हो उसका विश्वास था कि बहुत देश में शैक्षणिक क्रांति लाने की दिशा में प्रथम चरण होगा।

कोठरी शिक्षा आयोग
कोठरी शिक्षा आयोग


रिपोर्ट ने मुख्य निम्नलिखित सुझाव दिए

  • 1  शिक्षा की सभी स्तरों पर सामान्य शिक्षा के अनिवार्य रूप में समाज सेवा कार्य अनुभव जिसने हाथ से हाथ काम करने का उत्पादन अनुभव इत्यादि शामिल हो, आरंभ किए जाने चाहिए।

  • 2  नैतिक शिक्षा तथा सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना उत्पन्न करने पर बल दिया गया। विद्यालयों को अपने उत्तरदायित्व को  समझना चाहिए कि उन्हें युवकों को विद्यालय के संसार से कार्य तथा जीवन की संसार में आने में सहायता देनी चाहिए है।

  • 3  माध्यमिक शिक्षा को वेबसाइट बनाया गया।

  • 4 उन्नत अध्ययन  केंद्रों को अधिक सुदृढ़ बनाया जाए और बड़े विश्वविद्यालयों में एक छोटी सी संस्था ऐसी बनाई जाए जो उच्चतम अंतरराष्ट्रीय मानकों को प्राप्त करने का उद्देश्य रखें।

  • 5  विद्यालयों के लिए अध्यापक के परीक्षण  तथा श्रेणी पर विशेष बल दिया जाए।

  • 6   शिक्षा पुनर्निर्माण में कृषि, कृषि में अनुसंधान तथा इससे संबंधित विज्ञानों को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

शिक्षा की राष्ट्रीय नीति

मुख्यतः कोठारी आयोग की सिफारिशों पर आधारित करके 1968 में भारत सरकार ने जा पर एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें निम्नलिखित तथ्यों पर बल दिया गया था:-

  • 1 14 वर्ष की आयु तक अनिवार्य तथा निशुल्क शिक्षा।

  • 2 अध्यापकों के लिए पद तथा वेतन वृद्धि।

  • 3 तीन भाषाई फार्मूले को स्वीकार करना और क्षेत्रीय भाषाओं का विकास।

  • 4 विज्ञान तथा अनुसंधान की शिक्षा का सामान्य करण।

  • 5 कृषि तथा उद्योग के लिए शिक्षा का विकास।

  • 6 पाठ्य पुस्तकों को अधिकतम बनाना और शक्ति पुस्तकों का उत्पादन।

  • 7 राष्ट्रीय आय का 6% शिक्षा पर  खर्च करना।

नवीन शिक्षा नीति 1986

हमारी नवीन शिक्षा नीति का उद्देश्य हमारे गति हिना समाज को ऐसे गतिशील समाज में परिवर्तित करना है जिसमें विकास तथा परिवर्तन की वचनबद्धता हो इस नीति के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार है:-

  •  200 इसवी तक इस समय की 36% आरक्षकता को बढ़ाकर 56% कर देना।

  •  प्रारंभिक शिक्षा को सर्वव्यापी बनाना।

  •  उच्चतर माध्यमिक शिक्षा को व्यवसाय बनाना यह लक्ष्य 1990 तक 10% विद्यार्थी इस परिस्थिति में आ जाए और 1995 तक 25%।

  •  उच्च शिक्षा में सुधार लाना ताकि  अर्थव्यवस्था की आधुनिकरण में  सार्वभौमिकता में  निहित जो समस्याएं विद्यमान है उन्हें साक्षरता ने के लिए काफी प्रेरित जनशक्ति को प्रशिक्षित करना।

  • शिक्षा का सामाजिक प्रसंग होना चाहिए और  पाठ्यचर्या ऐसी बनाई जाए जिससे विद्यार्थी के मन में संविधान में दिए गए उत्तम सिद्धांत घर जाएं अर्थात

  • वे  राष्ट्रीयता में  गौरव का अनुभव करें।

  • यह धार्मिक निरपेक्ष तथा सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के प्रति वचनबद्ध हो।

  • विदेश की एकता तथा अखंडता के प्रति  खड़े रहे।

  • वे अंतरराष्ट्रीय पति पति के नियम में कट्टर  विश्वासी बन जाए।

सिद्धार्थ शुक्ला का जीवन परिचय sidharth shukla biography in hindi

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दोस्तों आज दिनांक  2 सितंबर 2021 को  बिग बॉस विजेता और टीवी एक्टर  सिद्धार्थ मल्होत्रा का निधन हो चुका है। सिद्धार्थ  शुक्ला का निधन हार्ट अटैक के कारण हुआ है सितंबर 2021 तक सिद्धार्थ शुक्ला  हॉस्पिटल में भर्ती थे और हॉस्पिटल में  उन्हें हार्टअटैक आया और जिससे उनकी मृत्यु हो गई।

Sidharth shukla ki photo
Sidharth shukla ki photo

सिद्धार्थ शुक्ला sidharth shukla कौन हैं

सिद्धार्थ शुक्ला बॉलीवुड और  भारतीय टेलीविजन बिग बॉस के विजेता रह चुके थे।

सिद्धार्थ शुक्ला का जीवन परिचय

सिद्धार्थ शुक्ला का जन्म  12 सितंबर 1980 को  मुंबई भारत में हुआ था। 2021 तक सिद्धार्थ शुक्ला की आयु  मात्र 40 वर्ष की थी।

सिद्धार्थ शुक्ला को बालिका वधू टेलीविजन नाटक से प्रसिद्धि मिली थी। इसके बाद सिद्धार्थ शुक्ला ने  बिग बॉस और खतरों के खिलाड़ी में भी भाग लिया और आगे चलकर उन्होंने मूवी में काम करना शुरू कर दिया था।

सिद्धार्थ शुक्ला की पहली मूवी का नाम  हम्टी शर्मा की दुल्हनिया थी। इस मूवी में सिद्धार्थ शुक्ला ने सहायक कलाकार का  रोल निभाया था।

सिद्धार्थ शुक्ला का धर्म हिंदू था और इन की नागरिकता  भारतीय है।  सिद्धार्थ शुक्ला ने 2021 तक शादी नहीं की थी।  सिद्धार्थ शुक्ला की लंबाई 188 मीटर थी  और सिद्धार्थ शुक्ला का  वजन 80 किलो था।  सिद्धार्थ शुक्ला की  राशि धनु थी।  सिद्धार्थ शुक्ला की आंखों का रंग काला और बालों का रंग काला था।

सिद्धार्थ शुक्ला को पुरस्कार और सम्मान

सिद्धार्थ शुक्ला को  उनकी एक्टिंग के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। 

2013 में उन्हें  भारतीय टेलीविजन अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया  और  2013 में ही बालिका वधू नाटक के लिए  बेस्ट मेल एक्टिंग के लिए अवार्ड दिया गया।

2014 में  सिद्धार्थ शुक्ला को स्टारडस्ट अवार्ड से सम्मानित किया गया  यह अवार्ड इन्हें हम्टी शर्मा की दुल्हनिया के सहायक कलाकार के लिए मिला था।

2019 में सिद्धार्थ शुक्ला को  स्टाइलिश एक्टर का अवार्ड दिया गया था।

सिद्धार्थ शुक्ला sidharth shukla का टेलीविजन करियर

सिद्धार्थ शुक्ला ने अपने टेलीविजन करियर की शुरुआत  बाबुल के आंगन नाम की नाटक से की थी। इसके बाद इन्होंने कई नाटक किए जिनमें से प्रमुख हैं  लव यू जिंदगी, लेकिन उन्हें  असली  प्रसिद्धि बालिका वधू के नाटक से ही मिली। बालिका वधू नाटक से ही उन्हें लोग जाने लगे थे। सिद्धार्थ शुक्ला को इंडियंटेलिविजन से कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था। बालिका वधू नाटक में सिद्धार्थ शुक्ला की एंट्री के बाद शो की  रेटिंग बढ़ गई थी। सिद्धार्थ शुक्ला ने बालिका वधू शो को 2014 में छोड़ दिया था और यहां से इन्होंने अपना फिल्मी कैरियर शुरू कर लिया।

Sidharth shukla ki photo
Sidharth shukla 

सिद्धार्थ शुक्ला का फिल्मी करियर

सिद्धार्थ शुक्ला ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 2014 में हम्टी शर्मा की दुल्हनिया से की।  इस मूवी में इन्होंने सहायक कलाकार का रोल निभाया था  और इस के लिए उन्हें अवार्ड भी दिया गया ।

सिद्धार्थ शुक्ला की इनकम sidharth shukla income

सिद्धार्थ शुक्ला एक एपिसोड के  साठी हजार रुपए प्रतिमाह चार्ज करते थे और फिल्मों में वह एक लाख से लेकर रुपए तक चार्ज करते थे।

सिद्धार्थ शुक्ला की मृत्यु कैसे हुई

2 दिसंबर 2021 को सिद्धार्थ शुक्ला को दिल का दौरा पड़ गया था और उन्हें कपूर हॉस्पिटल ले जाया गया और उन्हें डॉक्टरों ने  मृत्यु घोषित कर दिया था  और डॉक्टरों ने इस बात की पुष्टि की है कि सिद्धार्थ शुक्ला की मृत्यु  हॉट अटैक से हुई है ।

अंतिम शब्द

सिद्धार्थ शुक्ला  भारतीय टेलीविजन की एक मशहूर एक्टर थे आज 2 सितंबर को उनकी मृत्यु की खबर सामने आई है और इससे पूरी टेलीविजन इंडस्ट्री में  शोक का माहौल है।

FAQ

सिद्धार्थ शुक्ला की पत्नी का क्या नाम था?

सिद्धार्थ शुक्ला की शादी नहीं हुई थी और उनकी गर्लफ्रेंड के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

सिद्धार्थ शुक्ला कौन थे?

सिद्धार्थ शुक्ला टेलीविजन एक्टर थे।

LIC Online Payment Kaise Kare? Online LIC Premium Kaise Bhare, LIC Premium Online Kaise Jama Kare Hindi Mai

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हेलो दोस्तों नमस्कार आप सभी का स्वागत है हमारे ब्लॉग में दोस्तों आज हम आपको बताने वाले हैं कि LIC Online Payment Kaise Kare , दोस्तों यदि आप भी LIC Ki Online Payment करना चाहते है और आपको इसके बारे में जानकारी प्राप्त करना है तो आप बिल्कुल सही पोस्ट पढ़ रहे हैं। क्योंकि आज इस पोस्ट के माध्यम से आप जान जाएंगे की LIC Ka Online Payment Kaise Kare तथा LIC Premium Online Kaise Jama Kare इस पोस्ट के माध्यम से आज आप यह जानेंगे। हम आपको यह बहुत ही सरल भाषा में समझाएँगे।

LIC हमारे देश की सबसे प्रसिद्ध Policy Company है। यह कंपनी  भारत के लोगों को अलगअलग प्रकार के बीमा प्रदान करती है। आज के समय में हम जब भी Insurance Policy का नाम सुनते है तो सबसे पहले हमारे जहन में LIC Policy का नाम ही आता है। LIC के बहुत से अच्छेअच्छे Plans उपलब्ध है जिसका आप बहुत ही लाभ प्राप्त कर सकते है।

LIC Online Payment Kaise Kare

दोस्तों इस website पर resister करके LIC Online payment करने का तरीका बहुत ही आसान है। नीचे मेरे द्वारा कुछ स्टेप्स आपको बताऊंगी उन्हें आप स्टेप्स से आप Licके portal पर रजिस्टर भी हो सकते है:

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दोस्तों सबसे पहले आपको LIC की ऑफिशियल वेबसाइट LICindia.In पर जाना है।

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अब आपके सामने 2 ऑप्शन खुल कर जाएंगे उसमें से आपको New User के ऑप्शन पर क्लिक करना है।

Enter Your Details

New User के ऑप्शन पर Clickकरने के बाद आपके सामने एक New Page ओपन होगा जिसमें आपको अपनी जानकारीदेनी  है:

Policy Number – इस ऑप्शन में आपको अपना Policyका  Number भरना है।

Installment Amount – फिर आपको इस ऑप्शन में आपकी Installment Amount जितनी भी है है वह भरनी है।

Date Of Birth ऑप्शन में आप  अपनी जन्म दिनांक भरे।

Aadhar Card Number – इस ऑप्शन में आप अपना आधार कार्ड का  12 अंकों  का नंबर भरे।

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Gender – अब Gender के ऑप्शन को सिलेक्ट करे।

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अब आपकी सभी जानकारी को सही तरीके से भरने के बाद Authorization And Acceptance की Line को एक बार अच्छे से पढ़ ले और फिर ठीक उसके सामने दिए गए Proceed के बटन पर क्लिक करे।

Proceed Button पर जैसे ही आप क्लिक करेंगे तो आप LIC की ऑफिशियल वेबसाइट मैं Login हो जाएँगे। इस प्रकार से आप LIC पर Register हो सकते है और अपनी एलआईसी की पेमेंट ऑनलाइन भीकर सकते है।

Online LIC Premium Kaise Bhare

रजिस्टर करने के पश्चात आप इसका Online Premium भर सकते है चलिए दोस्तों जानते है Online Premium भरने का सही तरीका:

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सबसे पहले आप इसकी ऑफीशियल वेबसाइट LICindia.In को अपने फोन या लैपटॉप में ओपन करे जिसमें भी आप यह वेबसाइट ओपन करना चाहते हैं।

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जो Page Open होगा उसके Right Side में LIConline Service Portal में कुछ Option दिखेंगे उसमें से Online Payment के Option पर Click करे।

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अब New Page Open होगा उसमें Through Customer Portal के Option पर Click करे।

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दोस्तों जब आप Pay Renewal Premium/ Revival के ऑप्शन पर क्लिक करते है तो आप फिर LIC Payment Gateway Page के ऊपर Redirect हो जाएँगे।

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LIC Ka Online Payment Kaise Kare

दोस्तों अगर आप Online LIC Payment करना चाहते हैं तो हम आपको बता दें, कि इसके लिए बहुत तरीके हैं जैसे कि आप पेटीएम के माध्यम से भी एलआईसी की ऑनलाइन पेमेंट कर सकते हैं

  • इसके अतिरिक्त गूगल पर से भी आप पेमेंट कर सकते हैं दोस्तों इन दोनों से आप बहुत ही आसानी से पेमेंट कर सकते हैं हम आपको तरीका भी बता देते हैं कि आपको पेमेंट GooglePay के माध्यम से कैसे करनी है :-

  • दोस्तों सबसे पहले आप गूगल पर एप्लीकेशन को अपने मोबाइल फोन में इंस्टॉल कर लें इसके बाद आपको इसमें अपना बैंक अकाउंट लिंक कर ले बैंक अकाउंट लिंक करने के लिए आपका आप बैंक अकाउंट आपके मोबाइल नंबर के साथ भी लिंक होना चाहिए।

  •  आप इस एप्लीकेशन को ओपन कीजिए इसके बाद इस एप्लीकेशन में जब आप नीचे की तरफ जाएंगे तो आपको एलआईसी के नाम से एक ऑप्शन दिखेगा आपको उस पर क्लिक करना है।

  • जब आप इस ऑप्शन पर क्लिक करेंगे तो आपके सामने एक नया पेज खुल कर जाएगा उसमें आपको Policy Number डालना है फिर आपके सामने आपका नाम और पॉलिसी खुलकर जाएगी और उसके नीचे आपको एक Pay का ऑप्शन मिलेगा आपको उस पर क्लिक कर देना है फिर आपको बैंक अकाउंट लेफ्ट करना है और Pay कर देना है।

अन्तिम शब्द

हम आशा करते हैं कि आपको  यह पोस्ट  LIC Payment Kaise Kare बहुत ही पसंद आई होगी दोस्तों इस पोस्ट के माध्यम से अपने आप को बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी है, और हमने आपको अच्छे से समझाया है कि आप LIC Online Payment Kaise Kare दोस्तों अगर आपको मारिया को लाभदायक लगी हो, तो आप कमेंट सेक्शन में कमेंट करके हमें जरूर बताना इसके अतिरिक्त अगर आपका कोई प्रश्न है तो वह भी आप हमसे कमेंट सेक्शन में पूछ सकते हैं। धन्यवाद

PNG ka full form kya hai पीएनजी का फुल फार्म क्या है?

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 दोस्तों जब आप कोई फोटो डाउनलोड करते हैं  तो डाउनलोड करते समय आपके पास दो ऑप्शन आते हैं  पहला ऑप्शन होता है jpg  फॉर्मेट  और दूसरा PNG  फॉर्मेट। इस आर्टिकल में हम आपको PNG ka full form kya hai,PNG  फोटो का प्रयोग कहां कहां किया जाता है  आदि के बारे में पूरी जानकारी देंगे।

आज पूरी दुनिया में कंप्यूटर का तेजी से प्रयोग हो रहा है  और भारत में सभी परीक्षाओं में  कंप्यूटर संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। PNG एक  फाइल है,  जिसका  कॉन्पिटिटिव परीक्षा में full form पूछा जाता है।  अगर आप एक विद्यार्थी हैं  तो यह आर्टिकल आपके बहुत काम आएगा।

PNG ka full form kya hai?

Png ka full form hai portable Graphics Format।  पीएनजी फोटो का प्रयोग  इंटरनेट में सबसे अधिक किया जाता है और PNG फाइल में  किसी भी प्रकार की कॉपीराइट सीमा नहीं रहती है।

जब किसी इमेजेस फाइल को प्रोटेबल ग्राफिक नेटवर्क में save की जाती है  इस प्रक्रिया को PNG  कहा जाता है।  पीएनजी फाइल को gif फाइलस की तरह Lossless Compression  तकनीक से युक्त है।  इसका प्रयोग अधिकतर  ग्राफिकल वेब  फोटो को स्टोर करने के लिए किया जाता है।

 PNG  फोटो का प्रयोग  बैकग्राउंड वाली जगह पर भी किया जाता है। इसका लाभ यह होता है कि बैकग्राउंड hid नहीं होता है  और अधिकतर आईकॉन PNG  फॉर्मेट में होते हैं  और इन पीएनजी  फोटो का  साइज पेनिस इन फोटो फॉर्मेट से  कम होता है।

ATM ka full form kya hai

PNG photo का  प्रयोग कब से शुरू हुआ?

1994 में JPEG और GIF  फॉर्मेट का अधिक प्रयोग होने के कारण PNG  फोटो  फॉर्मेट  सामने आया।  इनमें दोनों से अधिक विशेषता PNG  फोटो में पाई जाती है। PNG  फोटो में GIF  की तरह  विशेषता पाई जाती है  और  यह jpeg  फोटो की तरह  24 बिट का कलर सपोर्ट भी देती है। PNG  फोटो को gif  विकल्प के रूप में  लॉन्च किया गया था। PNG  फोटो  फॉर्मेट को  इसलिए लांच किया गया था  क्योंकि GIF  को प्रयोग करने के लिए  लाइसेंस लेने की आवश्यकता पड़ती थी।

BCCI ka full from kya hai

PNG  फोटो फॉर्मेट में क्या क्या फीचर है?

पीएनजी फोटो में बहुत सारे फीचर उपलब्ध है  जैसे

1 PNG  फोटो फॉर्मेट में  कलर ट्रांसपेरेंट के साथ-साथ   ट्रांसपेरेंसी लेबल भी उपलब्ध होता है।

2 यह  एक ऐसा फोटो फॉर्मेट है जिसमें  इमेज फोटो लाइसेंस  आसानी से प्राप्त हो जाता है।

3 gamma correction की  हेल्प से  पीएनजी फोटो के  कलर ब्राइटनेस को  ज्यादा और कम किया जा सकता है।

4  पीएनजी  फॉर्मेट फोटो को  इमेजेस टू कलर grey scale में save भी  किया जा सकता है।

PNG  फाइल फॉर्मेट के क्या-क्या फायदे हैं

इस फाइल फोटो के  बहुत सारे फायदे हैं  जैसे

1  पीएनजी फाइल फॉर्मेट में Compression Loss  उपलब्ध कराता है, और एक  फोटो की क्वालिटी को  किसी भी कंप्रेशन रेश्यो में नहीं बदली जा सकती है।

2  पीएनजी इमेजेस फोटो Intermediate Versions  स्टोर करने के लिए  उपलब्ध  रहती है  जब आप दोबारा फोटो डाउनलोड करते हैं  उसकी क्वालिटी उसी प्रकार रहती है।

3  पीएनजी फोटो  फॉर्मेट फाइल  सभी कलर को  सपोर्ट करती है।

4 PNG  फोटो फॉर्मेट में Layers में  काम करना  बहुत आसान है।

5 ये Transparency  बहुत सारे  विकल्प देने का काम करती है।  इसमें टोटल 256  विकल्पों उपलब्ध हैं।

Conclusion

दोस्तों इस आर्टिकल में आपको PNG ka full form kya hai और PNG के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध कराई है।  आपको पी एम सी का फुल फॉर्म पता चल गया होगा।  जो आपके कॉन्पिटिटिव एग्जाम में काम आ सकता है।

Icc ka full form kya hai