प्रथम विश्व युद्ध क्या था प्रथम विश्व युद्ध के क्या क्या कारण थे ओर क्या परिणाम हुए हुए

विश्व के इतिहास में  प्रथम विश्वयुद्ध का  अपना महत्वपूर्ण स्थान है।  इस युद्ध के कारण पूरी दुनिया में तहलका मच गया था।  प्रथम विश्व युद्ध को  महान युद्ध भी कहा जाता है।  यूरोप का दो गुटों में विभाजित होने के कारण प्रथम विश्व युद्ध हुआ था।

प्रथम विश्व युद्ध में एक तरफ मित्र राष्ट्र  जिसमें  इंग्लैंड, रूस, और  फ्रांस शामिल था  बाद में प्रथम विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्र की ओर से अमेरिका भी शामिल हो गया  दूसरी ओर ऑस्ट्रिया ,हंगरी, ऑटोमन साम्राज्य और बुल्गारिया शामिल थे।

प्रथम विश्व युद्ध के क्या क्या कारण थे

दुनिया को प्रथम विश्व युद्ध की ओर धकेलने का एकमात्र कोई कारण नहीं था, युद्ध के पीछे बहुत सारे कारण थे

1  मौलिक और प्राथमिक कारण

राष्ट्रीयता की भावना

समय-समय पर जो प्रांतीय फ्रांस में हुई  उसमें यूरोप के देश  प्रभावित हुए और उन में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई । राष्ट्रीयता और प्रजातंत्र के भाव इन राष्ट्र में स्पष्ट दिखाई देने लगे।  इन प्रवृत्ति की वजह से प्रचारकों को भी अपने आदर्श का प्रचार करने का मौका मिल गया। इन देशों के  सम्राटों ने इन कोशिशों को बर्बरता से दबाने की कोशिश की, परंतु वे सफल नहीं हो सके। इस प्रकार यूरोप में प्राचीन और आप्राचीन प्रवृत्तियों में  संघर्ष उत्पन्न हो गया।

धीरे-धीरे और संघर्ष  फिसलता गया 19वीं सदी में इन विचारों में थोड़ा सा परिवर्तन आ पाया होगा, इन दिनों कई देशों में राजतंत्र प्रचलित था  इन देशों के सम्राट अपनी इच्छा अनुसार प्रजा पर अत्याचार करते थे इसके अलावा शादी देशों में बीसवीं सदी के प्रारंभ तक राष्ट्र प्रशासन जारी रहा। इन देशों में कई जातियों के लोग रहते थे और इसलिए यह लोग  राष्ट्रीयता प्राप्त करने के लिए लड़ रहे थे।

उग्र राष्ट्रीयता का बोध

जहां राष्ट्रीयता का बोध  किसी राष्ट्र के लिए वरदान है तो वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीयता का उग्र  बोध अभिशाप है। एक मायने में वह मादक पदार्थ है  समाज राष्ट्र को प्रभावित करता है और अंत में उसका विनाश कर देता है। 

इसको ग्रुप बहुत की वजह से आदमी और सोचने लगता है विदेश में कोई सभ्यता संस्कृति रीति रिवाज भाषा और धर्म आदि कुछ भी नहीं है इसलिए लोगों में यह भाव प्रबल हो जाता है कि दूसरे देशों के लोगों आज के दर्शन प्राप्त करना चाहिए। उन दिनों ऐसे भाव यूनान बलगारिया सरबिया और अन्य देशों में मौजूद थे।

सामाजिक परिवर्तन

18 वीं शताब्दी में यूरोप में औद्योगिक क्रांति हुई और जिसकी वजह से कई अन्वेषण हुए खोजे हुए इसे देश का सामाजिक जीवन प्रभावित हुआ।  शुरुआत में समाज में दो प्रकार के वर्ग थे प्रथम मैं अमीर वर्ग जमींदार लोग और कुलीन और दूसरे वर्ग में मजदूर और किसान। पहले वर्ग को विशेषाधिकार प्राप्त थे।

प्रथम वर्ग हमेशा अपनी स्थिति का फायदा उठाते थे और दूसरे वर्ग के लोगों का एक प्रकार से शोषण करते थे व्यापारिक क्रांति के बाद दूसरे वर्ग के लोगों में जागरूकता आई अभी उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करने लगे कुछ अधिकार मिले भी और उनका प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ने लगा प्रशासनिक मामलों में भी सूची लेने लगे और यह संघर्ष समाज के लिए घातक था।

आर्थिक साम्राज्यवाद

प्रथम विश्व युद्ध का यह प्राथमिक कारण और प्रमुख कारण आर्थिक साम्राज्यवाद था। हरी क्रांति के बाद  उत्पादकता में वृद्धि हुई और इसलिए देशों को अन्य देशों से कच्चे माल की आवश्यकता प्राप्त होने लगी और यह उन देशों में माल को बेचने  की आवश्यकता भी उत्पन्न हो गई और ऐसा तभी होता था जब उनका इस पर संपूर्ण अधिकार होता था।

इसके अलावा कुछ राजनैतिक वजह भी थी जिससे साम्राज्यवाद और अपनी शुरुआत उत्पन्न हुआ।  सभी देश एक सुरक्षित बाजार प्राप्त करना चाहते थे और उस पर अपना अधिकार करना चाहते थे।

प्रथम विश्व युद्ध  के द्वितीय कारण

1  यूरोप का दो  राजनीतिक दलों में विभाजन

जर्मनी का चांसलर बिस्मार्क हमेशा जर्मनी को शक्तिशाली राष्ट्र बनाने का प्रयत्न करता रहा इस वजह से वह फ्रांस को  नेत्रहीन बनाना चाहता था इसलिए जर्मनी ने अन्य देशों से संधि कर ली उसने इटली ऑस्ट्रिया और हंगरी से संधि की जिसे त्रिगुट संघ कहा जाता है।

फ्रांस अकेला रह गया था इसलिए यह एक शक्तिशाली राष्ट्र की खोज में था। शीघ्र ही उसे पता चला कि रूस जर्मनी से  असंतुष्ट है तो उसने रूप से संधि कर ली उसने अपना ध्यान इंग्लैंड की ओर आकर्षित किया उसने ना नैंसी संधि की अपितु इंग्लैंड और रूस के बीच मतभेदों को भी मिटाया। 

जिस प्रकार जर्मनी ने अपने त्रिगुट संघ बनाया उसी प्रकार  फ्रांस ने भी अपना त्रिगुट संघटन बनाया। दोनों संग एक दूसरे का हमेशा विरोध करते थे स्वभाविक था कि दोनों के बीच युद्ध होना चाहिए। जिन परिस्थितियों से उस समय यूरोप गुजर रहा था युद्ध को काबू में रखना नामुमकिन था बिस्मार्क की संघ पद्धति भी युद्ध के लिए जिम्मेदार थी परंतु शुरू से ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता था इसके अन्य और भी  घटक थे।

यूरोप में तानाशाही

यूपी देश में उग्र राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद की भावना जैसा कि देखा जा चुका है वह बलवान हो चुकी थी एक रात सफलता भी हो सकता था जब उनके पास सशक्त सेना हो यह उनके लिए समस्या थी इसे दूर करने के लिए इन देशों ने युवाओं के लिए सैनिक परीक्षण आवश्यक कर दिया नतीजा यह हुआ कि देश की जनसंख्या पूरी तरह से युद्ध की जीत है आर्थिक और आपात काल में युद्ध के मैदान पर योग्यता बतला सकती थी।

इस प्रकार की पद्धति को जन्म देने के लिए प्रशा जिम्मेदार था। नेपोलियन के जमाने में अपने आप की सुरक्षा के लिए उसने इस पद्धति का  निर्माण किया था यो पद्धति इतनी फायदेमंद सिद्ध हुई कि अन्य देशों ने भी इसका अनुकरण शुरू कर दिया इसका नतीजा यह हुआ कि ग्रुप में सैनिक सम्मान में बड़ी तीव्रता से वृद्धि हुई। 

यूरोप के देश अपनी आय का करीब 80%  इस प्रकार के खर्च में लगा देते थे। सभी देशो सोच रहे थे कि युद्ध आवश्यक है और वह कभी भी हो सकता है, सैनिकों की संख्या में काफी वृद्धि हो गई थी विज्ञान के आविष्कार ने युद्ध की नई तकलीफ उसने में योगदान दिया इसके अलावा राजनीतिक कवि और दार्शनिक भी  इस युद्ध के पक्ष में थे।रूजवेल्ट ने कहा था कि युद्ध हारने के बजाय युद्ध ना करना अच्छा है। 

कूटनीतिक  संधि

जब इस प्रकार का आता वरण तैयार हो गया था तब यूरोप के कुछ शक्तियां प्राप्त गुड्डू ने समझौते और  युद्ध के लिए मार्ग  खोल दिया सभी देश अपनी को सुरक्षित एवं शक्तिशाली बनाने के लिए एक दूसरे से संधि कर रहे थे ताकि युद्ध हो गया तो उन्हें हिस्सा लेना अवश्य जाएगा।

प्रथम विश्व युद्ध की सैनिकों की तस्वीर
प्रथम विश्व युद्ध की सैनिकों की तस्वीर

 

जर्मन सम्राट

प्रथम विश्व युद्ध में  जर्मन सम्राट का महत्वपूर्ण योगदान था। वे लोग अपने को  दुनिया की   शक्तिशाली प्रजाति मानते थे।  वहीं दूसरी ओर बिस्मार्क  जर्मनी को सबसे शक्तिशाली बनाना चाहता था।  इसके पीछे  उग्र राष्ट्रवाद की धारणा काम कर रही थी। हमारी सभ्यता  महान है, हमारी वेशभूषा और तरीके हमारे रीति रिवाज आदि विश्व में श्रेष्ठ है, विदेशियों से घृणा करनी चाहिए वह हमसे निम्न है।

जर्मन चांसलर बिस्मार्क स्पष्ट रूप से यह कहता था कि वे  आपकी प्यारी पुत्र हैं और उन्हें सारे देश को सुसंस्कृत करने के लिए भेजा है।

अंतरराष्ट्रीय संस्था का भाव

प्रथम विश्व युद्ध के समय  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई ऐसी संस्था नहीं थी  जो सिद्धू को रोक सकती थी। इसलिए पूरे यूरोपी लोग  युद्ध के लिए तैयार थी। यदि इस युद्ध को कोई दूर रख सकती थी तो वह अंतरराष्ट्रीय संस्था ही थी।

लोग महसूस करने लगे कि किसी अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना की जाए जो उनकी विवादों कोरियाई तरीके से सुलझा सके।

इस प्रकार 1898 में रूस के जार ने कांफ्रेंस बुलाई यद्यपि लोगों को इससे आशा थी विशेष कारणों से इसमें वह सफल नहीं हो पाया लेकिन 1960 में एक अन्य कांफ्रेंस बुलाई गई जिसमें अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना की गई इसमें कई विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से भी बताया परंतु यह युद्ध पर नियंत्रण नहीं लगा पाए।

प्रथम विश्व युद्ध का तत्कालीन कारण

ऑस्ट्रिया हंगरी  उत्तराधिकारी आर्ज ड्यूक फ्रांसिस की  हत्या

ऑस्ट्रिया और  हंगरी के  भविष्य के  सम्राट आर्ज ड्यूक फ्रांसिस  जब फर्डिनेंड का दौर कर रहे थे आर्ज ड्यूक फ्रांसिस  की गोली मारकर  हत्या कर दी गई।  इस घटना का जिम्मेदार ऑस्ट्रिया ने सरबिया को ठहराया और 24 घंटे के अंतर्गत  कार्यवाही करने की  मांग की  लेकिन  सर्बिया ने  ऑस्ट्रिया की मांग को ठुकरा दिया।

इसका  परिणाम यह हुआ कि  ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध  28 जुलाई 1914 को  युद्ध की घोषणा कर दी।

इस युद्ध में सभी राष्ट्र के समर्थक अपने-अपने ओर से  शामिल हो गए।

सर्बिया की ओर से , इंग्लैंड रूस, और फ्रांस में शामिल हो गए, जबकि  ऑस्ट्रिया की ओर से जर्मनी शामिल हो गया क्योंकि उसने पहले ही, ऑस्ट्रिया से संधि की थी।

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान देशों में आपस में  कई युद्ध लड़े थे  जिसमें  मार्ने का प्रथम युद्ध, सोम्मे का युद्ध, टैनबर्ग का युद्ध, गैलीपोली का युद्ध  इस युद्ध में  मुस्तफा कमाल पाशा ने अपनी सेना का परिचय दिया था और वर्दुन का युद्ध  इत्यादि शामिल थे।

1917 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रूस इस युद्ध से शांति समझौते के अनुसार बाहर हो गया  और अमेरिका मित्र राष्ट्र की ओर से प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हो गया,  इस घटना ने  युद्ध का रुख मोड़ दिया।

क्या प्रथम विश्वयुद्ध जरूरी था?

इस बारे में सकारात्मक और नकारात्मक भी मानी जाती है जर्मनी न कोई ना कोई बहाने की तलाश में था कई  शक्तियां जर्मनी के साथ शामिल हुई ओर कई देश सेना की भर्ती लगी हुई थी और किसी भी समय के लिए  उन्होंने एक विशाल सेना तैयार की थी इन रास्तों के अंग में युद्ध के लिए कुछ और चल रहा था इसलिए युद्ध शुरू करने के लिए किसी भी बहाने की खोज में थे इंग्लैंड की तुलना में जर्मनी का आर्थिक और औद्योगिक विकास कभी आगे था। 

रूस का रवैया कठोर था लेकिन जर्मनी का उससे भी कठोर रवैया था उठा ला जाना असंभव हो गया था। 28 जुलाई 1914 को जर्मनी ने  ऑस्ट्रिया के  रवेये को नरम करने की कोशिश की।  क्योंकि उस समय जर्मनी स्वयं युद्ध के लिए तैयार नहीं था। जब सरबिया की राजधानी पर गोलीबारी हुई तो बेटे ने संबंधित पार्टी हो कॉन्फ्रेंस टेबल पर बुलाया परंतु रूस ने इंकार कर दिया। रूस ने जर्मनी की युद्ध की ठोस को चुनौती के रूप में लिया।

प्रथम विश्व युद्ध के क्या क्या परिणाम हुए

अपनी कारण अपने आप में प्रभाव नहीं सकता है रोहित के अपने कारण थे और उसने अपने प्रभाव भी छोड़े इसके राजनैतिक सामाजिक और आर्थिक तथा धार्मिक प्रभाव पड़े।

राजनीतिक प्रभाव और परिणाम

तानाशाही की समाप्ति

फ्रांसीसी क्रांति के बाद 1 महीने में यूरोप के कुछ देशों में तानाशाह एवं निरंकुश राज्य के स्थान पर गणराज्य स्थापित हुए। इस विश्व युद्ध के बाद कई गणतंत्र द्वारा स्थापित हुआ। उदाहरण के लिए ऑस्ट्रिया हंगरी जर्मनी रूस इत्यादि में। सभी लोग यह जानते हैं कि सम्राट तानाशाह निरंकुश होते हैं ।

वे समूचे यूरोप में अपने दिखावे के लिए प्रसिद्ध थे परंतु इस युद्ध ने यह साबित कर दिया कि उनका दिखाओ एक वृक्ष की तरह है जो नदी के तट पर खड़ा है और एक ही बाहों में गिर जाएगा  और उस समय जर्मनी की भी यही हालत थी। इस युद्ध के बाद तुर्की में बहुत सारी परिवर्तन हुए।  तुर्की में खलीफा का पद समाप्त हो गया।

नए गणतंत्र की स्थापना

प्रथम विश्व युद्ध के पूर्व केवल तीन गणराज्य थे युद्ध के बाद अधिकतर देशों में गणराज्य की मांग की।  1923 में तुर्की में गणतंत्र स्थापित हो गया  चौकी 19वीं सदी के गिरोह पर प्रजातंत्र का आदर्श काफी फैल चुका था परंतु चिंता क्यों इच्छा थी कि निर्वाचन सांसद ने बड़ी मताधिकार में व्यक्ति और प्रशासकीय सुधार भी हो।

राष्ट्रीयता में वृद्धि

फ्रांस की क्रांति के बाद लोग चौकस हो गए थे अब प्रत्येक आदमी जिसके पास  धर्म प्रजाति में समानता थी दूसरे आदमी से जुड़कर एक प्रथम राष्ट्र का निर्माण करना चाहते थे। रक्षिता का भाव उस हद तक पहुंच गया था कि लोग आंदोलन के माध्यम से पुराना राशन समाप्त कर नई प्रजातांत्रिक सरकार बनाने लगे।

वीना कांग्रेस और बर्लिन कांफ्रेंस में यह सिद्धांत बड़ी शक्तियों द्वारा नजरअंदाज कर दिए गए और इस समस्या को संयुक्त रूप से सुलझाने का प्रयास किया गया। अंत में संयुक्त राष्ट्र के  सामने  पुनर्गठन की समस्या थी। अभी महसूस करने लगे की राष्ट्रीयता को अलग  रखते हुए शांति स्थापित करना संभव नहीं है यही कारण था कि पेरिस के शांति सम्मेलन में यूरोप का पुनर्निर्माण राष्ट्रीयता के आधार पर करने की सूची।  इस आधार पर जो पोस्ट लव या पोलैंड युगोस्लाविया लातविया या फिनलैंड हंगरी औरल लूथिनिया राष्ट्र अस्तित्व में आए।

अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र में काफी हद तक परिवर्तन आया।

प्रजातांत्रिक विचारों का दमन

युद्ध के समय विश्व के राष्ट्रों के समूह के एक बड़ी समस्या आ गई थी और स्वाभाविक परिस्थितियों के कारण स्थिति सामान्य नहीं थी जन अधिकार सीमित कर दिए गए थे। की सुरक्षा की दृष्टि से लोगों के मूल अधिकार प्रतिबंध कर दिए गए।

यूरोप के सभी देशों में इस प्रकार की  अवस्था थी, युद्ध के समय कठोरता आवश्यक हो गई थी परंतु युद्ध के बाद स्थितियां बदल गई।  इन  प्रतिबंधों की गई आवश्यकता नहीं रही। कई सरकारों ने उन्हें उठाया नहीं इसे सहन नहीं कर सकती और उनकी समाप्ति की मांग करने लगे।

सैनिक तानाशाही का उत्थान

प्रथम विश्व युद्ध के बाद  जर्मनी  के इस हिटलर ने  अपनी सैन्य शक्ति को और मजबूत कर दिया दूसरी ओर  ब्रिटेन की नौसेना और भी सशक्त हो गई थी। आगे चलकर द्वितीय विश्व युद्ध का कारण बनी।

अंतर्राष्ट्रीय तक का उदय

प्रथम विश्व युद्ध के बाद ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  अंतरराष्ट्रीय संस्था का उदय हुआ,  राष्ट्र संघ की स्थापना की गई  इस का कार्य अंतरराष्ट्रीय विवादों को रोकना था।

आर्थिक प्रभाव

साम्यवाद का प्रचार

प्रथम विश्व युद्ध के पहले से यूरोप के कई देशों में साम्यवाद फैला हुआ था फिर इसकी व्यापक रूप  लोकप्रियता नहीं हो पाई थी। सभी प्रकार का व्यापार और वाणिज्य जनता के हाथ में था। युद्ध के समय कुछ देशों को ऐसा लगा कि युद्ध सामग्री निर्माण करने वाली कंपनियों पर सरकार नियंत्रण करें इसलिए कोयला उत्पादन अस्त्र-शस्त्र की फैक्ट्रियां आदि सरकार ने अपने हाथों में ले ली पूंजीपतियों द्वारा इसका विरोध किया गया।

इसलिए एक बार फिर व्यापक उनके हाथ में चला गया तो भी राज्य का हस्तक्षेप जारी रहा  इस प्रकार धीरे-धीरे साम्यवाद और समाजवाद के लिए  भूमि तैयार होने लगी।

मुद्रास्फीति

कोई युद्ध बिना पैसों के लड़ा नहीं जा सकता है वास्तविकता यह है कि युद्ध में पैसा पानी की तरह बहता है। इस प्रकार पैसों और पूंजी का बहुत नुकसान होता था।  नील फैक्ट्री दिला दी बिना किसी  विवेक की नष्ट कर दिए गए। सरकार अधिक से अधिक पैसा चाहती थी और इसलिए लोगों पर कर लगाए गए।

आवश्यकता के समय सरकार रहने लग गई थी। इस प्रकार युद्ध के समय सरकार देशी एवं विदेशी ऋण के बोझ में दब जाती थी। वस्तुओं के भाव बढ़ जाते थे कागजी मुद्रा की कीमत कम हो जाती थी सरकार आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। यूरोपीय देशों की ऐसी हालत थी युद्ध के बाद भी हालत से उभरना चाहते थे और इसलिए उन्होंने कई योजनाएं अपने हाथों में ले।

श्रमिक आंदोलन

युद्ध के समय फैक्ट्री आखरी तक युद्ध की जरूरतों को पूरा कर सके फिर युद्ध क्षेत्रों के लिए सीना चाहिए और इसलिए कई देशों में श्रमिकों की कमी हो गई। परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए श्रमिक उनके संगठन बना लेते हैं और उनकी अधिक सुविधाओं एवं अधिक वेतन की मांग को पेश करते हैं कभी कभी भी आंदोलनों का सहारा भी ले लेते हैं । विजय के साथ इस वर्ग के लोगों को  जाती है।

के अलावा धनजन का सहारा युद्ध का प्रमुख आर्थिक परिणाम था महायुद्ध के बाद आर्थिक असंतुलन पैदा हो गया कई यूरोपीय देशों में तो पुरुषों की कमी हो गई पोलैंड की खानी ध्वस्त हो गई। विश्व के आर्थिक संगठन को धक्का लगा।

सामाजिक परिणाम और प्रभाव

औरतों की स्थिति में परिवर्तन

अभी तक औरतें नाजुक समझी जाती थी और इसलिए करीब करीब सभी देशों में  वह घरों में ही रह जाती थी। विश्वास था कि वह घरों को स्वस्थ रखने के लिए है और आदमियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नहीं चल सकती। युद्ध में हजारों लाखों लोग मारे गए थे लाखों लोग अपाहिज हो गए इसलिए पुरुष अब मीनू फैक्ट्रियों और दफ्तरों में काम करने के लिए  पर्याप्त नहीं थे।

आवश्यक वस्तु का दाम लगातार बढ़ रहा था, इन सभी की पूर्ति के लिए महिलाएं बाहर आई क्षेत्र में पुरुषों के साथ काम करने लगी कार से महान सामाजिक क्रांति थी। आप औरतों को राजनैतिक अधिकार मिलने लगे।

प्रजाति और रंगभेद के भाव का लोप

युद्ध के पहले कई प्रजातियां यूरोप में ऐसी थी जिन्हें अपनी प्रजाति की सर्वोच्चता पर गर्व था के लिए वीरों की असली प्रजातियां यह मानती थी कि वे अधिक कृत सभ्य और अन्य से श्रेष्ठ हैं और अन्य को सुसंस्कृत करना उनका फर्ज है।

युद्ध के समय उन्हें दूसरी प्रजातियों से मदद लेनी पड़ी उन्हें भलीभांति मालूम था कि एशिया के काले और पीले लोग भी बड़ी हिम्मत और साहस से लड़ सकते हैं तब यह सिद्ध हो गया कि भारत और अफ्रीका की सिपाही हीरो के सिपाहियों के समान ही थे उदाहरण के लिए  प्रथम विश्व युद्ध में भारत के कई सैनिकों ने अंग्रेजों की ओर से यानी कि ब्रिटेन की ओर से  भाग लिया था।

शिक्षा और विज्ञान का विकास

युद्ध के समय रास्तों का सारा ध्यान सिपाहियों पर लगा हुआ था युद्ध करीब 4 साल तक चला था। निशा सोनी परी तुम्हें विजय प्राप्त हो जाने की बात कही अविष्कार हुए भाई चिकित्सा आदि में बहुत उन्नति हुई।

धार्मिक परिणाम और प्रभाव

एक और जर्मनी और उसके मित्र थे दूसरी ओर मित्र राष्ट्रीय संबंध शक्तियां। ईसाई दोनों तरफ शामिल थे।

धार्मिक मुखिया ने अपने-अपने देशों की चिड़िया घरों में विजय की प्रार्थना की यह आश्चर्य की बात थी कि जब दोनों ही देश की इस वक्त और चर्च एक थे तो अलग-अलग प्रार्थना करने का क्या मतलब था वास्तव में उन्हें युद्ध रोकने का प्रयत्न करना चाहिए था और दलित वर्ग के लिए दोषी लोगों के लिए कार्य करना था।

युद्ध के बाद नवीन विचारों का प्रारंभ हुआ नई आशाएं प्रकट हुई काले गोरे रंग का खेती में ट्रेलर का शिक्षा प्रचार को प्रोत्साहन मिला पूंजी पतियों के विरुद्ध आंदोलन होने लगा।

प्रथम विश्वयुद्ध के खत्म होने के दौरान की गई  संधि

1 वर्साय की सन्धि  यह संधि जर्मनी के साथ की गई थी।

2 न्यूली की संधि प्रथम विश्व युद्ध में  बाल्कन छोटे देशों को  बहुत ज्यादा नुकसान हुआ इसलिए इन्हें तथा बुल्गारिया को यूनान और   युगोस्लाविया और रोमानिया के प्रांत दे दिए  गए थे।

3 सेवर की संधि टर्की तुर्की के साथ की  इस संधि के द्वारा तुर्की के कई प्रांतों का विभाजन कर दिया गया।

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